यह लेख Article 359 (अनुच्छेद 359) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 359 (Article 359) – Original
भाग 18 [आपात उपबंध] |
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359. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन — (1) जहां आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है वहां राष्ट्रपति, आदेश द्वारा यह घोषणा कर सकेगा कि 1[(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदत्त ऐसे अधिकारों] को प्रवर्तित कराने के लिए, जो उस आदेश में उल्लिखित किए जाएं, किसी न्यायालय को समावेदन करने का अधिकार और इस प्रकार उल्लिखित अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए किसी न्यायालय में लंबित सभी कार्यवाहियां उस अवधि के लिए जिसके दौरान उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है या उससे लघुतर ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, निलंबित रहेंगी। 2[(1क) जब 2[(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदत्त किन्हीं अधिकारों] को उल्लिखित करने वाला खंड (1) के अधीन किया गया आदेश प्रवर्तन में है तब उस भाग में उन अधिकारों को प्रदान करने वाली कोई बात उस भाग में यथापरिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्बधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि पूर्वोक्त आदेश के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है :] 3[परन्तु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां, यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहां तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।] 4[(1ख) खंड (।क) की कोई बात— (क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्घोषणा के संबंध में है ; या (2) पूर्वोक्त रूप में किए गए आदेश का विस्तार भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग पर हो सकेगा : 5[परन्तु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां किसी ऐसे आदेश का विस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के किसी अन्य भाग पर तभी होगा जब राष्ट्रपति, यह समाधान हो जाने पर कि भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है, ऐसा विस्तार आवश्यक समझता है। (3) खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा। 6[359क. [इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना] – संविधान (तिरसठवां संशोधन) अधिनियम, 1989 की धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) निरसित। |
Part XVIII [EMERGENCY PROVISIONS] |
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359. Suspension of the enforcement of the rights conferred by Part III during emergencies— (1) Where a Proclamation of Emergency is in operation, the President may by order declare that the right to move any court for the enforcement of such of 1[the rights conferred by Part III (except articles 20 and 21)] as may be mentioned in the order and all proceedings pending in any court for the enforcement of the rights so mentioned shall remain suspended for the period during which the Proclamation is in force or for such shorter period as may be specified in the order. 2[(1A) While an order made under clause (1) mentioning any of 1[the rights conferred by Part III (except articles 20 and 21)] is in operation, nothing in that Part conferring those rights shall restrict the power of the State as 3[Provided that where a Proclamation of Emergency is in operation only in any part of the territory of India, any such law may be made, or any such executive action may be taken, under this article in relation to or in any State or Union territory in which or in any part of which the Proclamation of Emergency is not in operation, if and in so far as the security of India or any part of the territory thereof is threatened by activities in or in relation to the part of the territory of India in which the Proclamation of Emergency is in operation.] 4[(1B) Nothing in clause (1A) shall apply— (2) An order made as aforesaid may extend to the whole or any part of the territory of India: 5[Provided that where a Proclamation of Emergency is in operation only in a part of the territory of India, any such order shall not extend to any other part of the territory of India unless the President, being satisfied that the security of India or any part of the territory thereof is threatened by activities in or in relation to the part of the territory of India in which the Proclamation of Emergency is in operation, considers such extension to be necessary.] (3) Every order made under clause (1) shall, as soon as may be after it is made, be laid before each House of Parliament. 6[3359A. [Application of this Part to the State of Punjab.].—Omitted by the Constitution (Sixty-third Amendment) Act, 1989, s. 3 (w.e.f. 6-1-1990). |
🔍 Article 359 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग आपात उपबंध (EMERGENCY PROVISIONS) के बारे में है।
भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान विशेष शक्तियों का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय या संवैधानिक संकट के समय भारत के राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जा सकता है। ये प्रावधान सरकार को कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और संकट से निपटने के लिए अन्य असाधारण उपाय करने की अनुमति देते हैं।
आपातकालीन प्रावधानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
राष्ट्रीय आपातकाल: यह सबसे गंभीर प्रकार का आपातकाल है और इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।
राष्ट्रपति शासन: यह तब घोषित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।
वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि वित्तीय संकट मौजूद है या होने की संभावना है तो इसे घोषित किया जा सकता है।
आपातकालीन प्रावधान भारतीय संविधान का एक विवादास्पद हिस्सा हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि संकट के समय में देश की रक्षा के लिए वे आवश्यक हैं, जबकि अन्य का तर्क है कि वे बहुत शक्तिशाली हैं और सरकार द्वारा उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।
उपरोक्त सारे आपातकालीन प्रावधानों को अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में सम्मिलित किया गया है; और इस लेख में हम अनुच्छेद 359 को समझने वाले हैं;
⚫ ◾ राष्ट्रपति शासन और बोम्मई मामला (President Rule) |
| अनुच्छेद 359 – आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन (Suspension of the enforcement of the rights conferred by Part III during emergencies)
विपरीत परिस्थितियों में देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की बात की गई है। जिसके तहत हमने समझा कि किस तरह से बाह्य आक्रमण के आधार पर आपातकाल लगाया जा सकता है। पहले आंतरिक अशांति के आधार पर भी लगाया जा सकता था लेकिन अब सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लगाया जा सकता है। हालांकि सशस्त्र विद्रोह भी आंतरिक अशांति को जन्म देता है।
इसी में से जब पहले दो के आधार पर आपातकाल लगाया जाता है तब अनुच्छेद 19 के प्रावधानों को निलंबित कर दिया जाता है। और अनुच्छेद 358 इसी के बारे में है।
इसी से आगे की बात अनुच्छेद 359 में की गई है। अनुच्छेद 359 में आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन कि व्यवस्था की गई है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 3 खंड है। आइये इसे समझें;
Article 359 Clause 1 Explanation
अनुच्छेद 359 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि जहां आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है वहां राष्ट्रपति, आदेश द्वारा यह घोषणा कर सकेगा कि (अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदत्त ऐसे अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए, जो उस आदेश में उल्लिखित किए जाएं, किसी न्यायालय को समावेदन करने का अधिकार और इस प्रकार उल्लिखित अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए किसी न्यायालय में लंबित सभी कार्यवाहियां उस अवधि के लिए जिसके दौरान उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है या उससे लघुतर ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, निलंबित रहेंगी।
(1क) जब (अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदत्त किन्हीं अधिकारों को उल्लिखित करने वाला खंड (1) के अधीन किया गया आदेश प्रवर्तन में है तब उस भाग में उन अधिकारों को प्रदान करने वाली कोई बात उस भाग में यथापरिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्बधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि पूर्वोक्त आदेश के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है:
परन्तु जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां, यदि और जहां तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहां तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।
(1ख) खंड (1क) की कोई बात—
(क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्घोषणा के संबंध में है ; या
(ख) किसी ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतर्विष्ट करने वाली विधि के अधीन न करके अन्यथा की गई है।
अनुच्छेद 359 के अनुसार, अनुच्छेद 358 के तहत, अनुच्छेद 19 तो अपने आप ही निलंबित हो जाता है लेकिन अनुच्छेद 359 के तहत अगर राष्ट्रपति चाहे तो अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर किसी भी अन्य मूल अधिकारों को लागू होने से निलंबित कर सकता है।
इसका अर्थ ये है कि मूल अधिकार तो रहता ही है लेकिन उस अवधि के दौरान अगर मूल अधिकारों का हनन होता है तो इसके बहाली के मांग को लेकर उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय नहीं जाया जा सकता है।
यहाँ याद रखने वाली बात है कि पहले राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को भी निलंबित कर सकता था, पर 44वां संविधान संशोधन 1978 के माध्यम से इसे हटा दिया गया। यानी कि अनुच्छेद 20 (अपराधों के मामले में दोषसिद्धि से संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) का हनन होने पर न्यायालय जाया जा सकता है।
[इसी से संबंधित एक दिलचस्प मामला है – habeas corpus case 1976, इसे अवश्य पढ़ें]
यहाँ पर एक बात याद रखिए कि ये सारे अधिकार निलंबित होता है खत्म नहीं। यानी कि मूल अधिकार तो होता ही है लेकिन अगर आपके मूल अधिकारों का हनन होता है तो आप कोर्ट नहीं जा सकते।
जिन अधिकारों का निलंबन राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 359 के तहत किया जाएगा। उन अधिकारों के संबंध में जो भी आदेश दिये जाएँगे या जो भी विधि बनाए जाएँगे, उसे आदेश के समाप्ति के बाद अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
इसके साथ ही जो भी आदेश दिये जाएँगे उस आदेश के प्रभाव में किए गए किसी भी विधायी या कार्यकारी कार्य को आदेश समाप्ति के उपरांत चुनौती नहीं दी जा सकती है।
Article 359 Clause 2 Explanation
अनुच्छेद 359 के खंड (2) में कहा गया है कि पूर्वोक्त रूप में किए गए आदेश का विस्तार भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग पर हो सकेगा :
हालांकि जहां आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहां किसी ऐसे आदेश का विस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के किसी अन्य भाग पर तभी होगा जब राष्ट्रपति द्वारा निश्चित हो जाने पर कि भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है, ऐसा विस्तार आवश्यक समझता है।
Article 359 Clause 3 Explanation
अनुच्छेद 359 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
अनुच्छेद 358 और अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों पर प्रभाव |
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अनुच्छेद 358 के तहत स्वतः ही अनुच्छेद 19 का निलंबन हो जाता है इसके लिए राष्ट्रपति के आदेश की जरूरत नहीं पड़ती। |
वहीं अगर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 19 के अतिरिक्त किसी अन्य मूल अधिकारों को निलंबित करना है तो वे अनुच्छेद 359 के तहत ऐसा कर सकते हैं। लेकिन अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर । |
अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 का निलंबन केवल बाह्य आक्रमण के आधार पर ही होता है। |
जबकि अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन बाह्य और आंतरिक दोनों आपातकाल में होता है। |
अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 तब तक निलंबित रहता है जब तक आपातकाल लागू रहता है |
वहीं अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन; राष्ट्रपति जितनी अवधि तय करता है, उतनी अवधि तक रहता है। |
अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 सम्पूर्ण देश में निलंबित हो जाता है। |
वहीं अनुच्छेद 359 के तहत मूल अधिकारों का निलंबन पूरे देश में या फिर देश के किसी भाग में किया जा सकता है। |
अनुच्छेद 358 के तहत ऐसे नियम भी बनाए जा सकते हैं जो अनुच्छेद 19 से संबंध नहीं रखते हैं। |
लेकिन अनुच्छेद 359 के तहत सिर्फ ऐसे नियम ही बनाए जा सकते हैं जो इसी अनुच्छेद के तहत निलंबित मूल अधिकारों से संबन्धित हो। |
Article 359 in the Nutshell
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 अनुच्छेद 357 के तहत घोषित राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन से संबंधित है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता दोनों के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ वाला एक महत्वपूर्ण प्रावधान है।
अनुच्छेद 359 के मुख्य बिंदु:
- निलंबन की शक्ति: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, घोषणा कर सकते हैं कि आदेश में उल्लिखित कुछ मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए किसी भी अदालत में जाने का अधिकार निलंबित कर दिया जाएगा। उन अधिकारों के प्रवर्तन के लिए अदालतों में सभी लंबित कार्यवाही भी निलंबित रहेंगी।
- निलंबन का दायरा: सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद 20 और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) द्वारा गारंटीकृत लोग प्रतिरक्षित हैं और उन्हें किसी भी परिस्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, संविधान के भाग III में अन्य अधिकार, जैसे भाषण, सभा और आंदोलन की स्वतंत्रता, राष्ट्रपति के आदेश के आधार पर आंशिक या पूरी तरह से निलंबित किए जा सकते हैं।
- प्रादेशिक कवरेज: यह आदेश पूरे भारत या केवल एक विशिष्ट भाग तक विस्तारित हो सकता है। यह खतरे के स्थान या आपातकालीन उपायों की आवश्यकता वाली स्थिति के आधार पर लक्षित निलंबन की अनुमति देता है।
- संसदीय निरीक्षण: अनुच्छेद 359 के तहत दिया गया कोई भी आदेश यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाना चाहिए। यह आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करती है और कानून निर्माताओं को ऐसे आवश्यक अधिकारों के निलंबन की जांच करने का अवसर प्रदान करती है।
- निलंबन की अवधि: मौलिक अधिकारों का निलंबन केवल राष्ट्रीय आपातकाल की अवधि या राष्ट्रपति के आदेश में निर्दिष्ट छोटी अवधि के लिए प्रभावी रहता है।
अनुच्छेद 359 की आलोचनाएँ:
- दुरुपयोग की संभावना: ऐसी चिंताएं हैं कि अधिकारों को निलंबित करने की व्यापक शक्ति का दुरुपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए या असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है।
- न्यायिक समीक्षा का अभाव: जबकि संसदीय निरीक्षण मौजूद है, आदेश को सीधे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इससे जवाबदेही और कानून के शासन के संभावित उल्लंघन पर सवाल उठते हैं।
- लोकतंत्र पर प्रभाव: मौलिक अधिकारों को अस्थायी रूप से निलंबित करना, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकता है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।
वर्तमान परिदृश्य:
- हाल के दिनों में अनुच्छेद 359 का उपयोग दुर्लभ रहा है, जो इसके संभावित नुकसानों के बारे में बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 359 को लागू करने और निलंबन के दायरे की व्याख्या के लिए सख्त दिशानिर्देश भी दिए हैं।
विचार योग्य प्रश्न:
- अनुच्छेद 359 और उसकी व्याख्या पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों का विश्लेषण करें।
- अनुच्छेद 359 में सुधार या इसके दायरे को सीमित करने पर विभिन्न दृष्टिकोणों की तुलना करें और अंतर करें।
- विशिष्ट उदाहरणों पर शोध करें जहां अनुच्छेद 359 लागू किया गया था और व्यक्तिगत अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर इसके प्रभाव का आकलन करें।
तो यही है अनुच्छेद 359, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
⚫ ◾ राष्ट्रपति शासन और बोम्मई मामला (President Rule) |
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Related MCQs with Explanation
Question 1: Which of the following fundamental rights CANNOT be suspended under Article 359?
(a) Right to life (Article 21)
(b) Right to equality (Article 14)
(c) Right to freedom of speech and expression (Article 19)
(d) Right to constitutional remedies (Article 32)
Answer: (a) Explanation: Article 359 explicitly bars the suspension of the right to life guaranteed under Article 21. All other fundamental rights, including those mentioned in the options, can be partially or fully suspended by a Presidential order during a national emergency.
Question 2: The scope of suspension of fundamental rights under Article 359:
(a) Applies to all citizens of India irrespective of their involvement in the emergency.
(b) Can be extended to cover any fundamental right, regardless of its connection to the emergency.
(c) Must be limited to the specific reasons and circumstances that led to the declaration of emergency.
(d) Requires prior approval of the Supreme Court.
Answer: (c) Explanation: Although Article 359 empowers the President to suspend fundamental rights, this suspension is not absolute. It should be proportionate and limited to the specific exigency that caused the emergency. Supreme Court’s role is crucial in reviewing the reasonableness and proportionality of such suspensions.
Question 3: One of the criticisms of Article 359 is that it:
(a) Provides inadequate safeguards against arbitrary and prolonged suspension of rights.
(b) Does not distinguish between different types of emergencies and applies a blanket suspension.
(c) Offers excessive protection to fundamental rights, hindering effective response to emergencies.
(d) Renders the Parliament irrelevant in the process of suspending rights.
Answer: (a) Explanation: A major concern around Article 359 is the potential for misuse and undermining essential liberties. The broad scope of suspension and lack of explicit limitations on duration raise concerns about arbitrary government action.
Question 4: The Supreme Court, through landmark judgments, has clarified that:
(a) Any suspension of fundamental rights under Article 359 must be accompanied by a detailed explanation by the President.
(b) The President’s decision to suspend rights is final and cannot be challenged in court.
(c) Any individual whose rights are affected can seek immediate judicial remedy through Article 32.
(d) The scope of suspension should be reviewed periodically by the Parliament.
Answer: (a) & (d) Explanation: The Supreme Court has played a crucial role in interpreting Article 359 and upholding the balance between national security and individual rights. It has emphasized the need for transparency, proportionality, and periodic review of emergency measures.
| Related Article
⚫ अनुच्छेद 360 – भारतीय संविधान |
⚫ अनुच्छेद 358 – भारतीय संविधान |
⚫ भारतीय संविधान ⚫ संसद की बेसिक्स ⚫ मौलिक अधिकार बेसिक्स ⚫ भारत की न्यायिक व्यवस्था ⚫ भारत की कार्यपालिका |
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |