Article 357 of the Constitution | अनुच्छेद 357 व्याख्या

यह लेख Article 357 (अनुच्छेद 357) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 357 (Article 357) – Original

भाग 18 [आपात उपबंध]
357. अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन विधायी शक्तियों का प्रयोग — (1) जहां अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषणा की गई है कि राज्य के विधान-मंडल की शक्तियां संसद्‌ द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी वहां-

(क) राज्य के विधान-मंडल की विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को प्रदान करने की और इस प्रकार प्रदत्त शक्ति का किसी अन्य प्राधिकारी को, जिसे राष्ट्रपति इस निमित विनिर्दिष्ट करे, ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें राष्ट्रपति अधिरोपित करना ठीक समझे, प्रत्यायोजन करने के लिए राष्ट्रपति को प्राधिकृत करने की संसद्‌ को;

(ख) संघ या उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान करने या उन पर कर्तव्य अधिरोपित करने के लिए अथवा शक्तियों का प्रदान किया जाना या कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत करने के लिए, विधि बनाने की संसद्‌ को अथवा राष्ट्रपति को या ऐसे अन्य प्राधिकारी को, जिसमें ऐसी विधि बनाने की शक्ति उपखंड (क) के अधीन निहित है;

(ग) जब लोक सभा सत्र में नहीं है तब राज्य की संचित निधि में से व्यय के लिए संसद्‌ की मंजूरी लंबित रहने तक ऐसे व्यय को प्राधिकृत करने की
राष्ट्रपति को,
क्षमता होगी।

1[(2) राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद्‌ द्वारा, अथवा राष्ट्रपति या खंड (1) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा, बनाई गई ऐसी विधि, जिसे संसद्‌ अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होता, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात्‌ तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक सक्षम विधान-मंडल या अन्य प्राधिकारी द्वारा उसका परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है।]
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1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 357 हिन्दी संस्करण

Part XVIII [EMERGENCY PROVISIONS]
357. Exercise of legislative powers under Proclamation issued under article 356— (1) Where by a Proclamation issued under clause (1) of article 356, it has been declared that the powers of the Legislature of the State shall be
exercisable by or under the authority of Parliament, it shall be competent—
(a) for Parliament to confer on the President the power of the Legislature of the State to make laws, and to authorise the President to delegate, subject to such conditions as he may think fit to impose, the power so conferred to any other authority to be specified by him in that behalf;
(b) for Parliament, or for the President or other authority in whom such power to make laws is vested under sub-clause (a), to make laws conferring powers and imposing duties, or authorising the conferring of powers and the imposition of duties, upon the Union or officers and authorities thereof;
(c) for the President to authorise when the House of the People is not in session expenditure from the Consolidated Fund of the State pending the sanction of such expenditure by Parliament.

1[(2) Any law made in exercise of the power of the Legislature of the State by Parliament or the President or other authority referred to in sub-clause (a) of clause (1) which Parliament or the President or such other authority would not, but for the issue of a Proclamation under article 356, have been competent to make shall, after the Proclamation has ceased to operate, continue in force until altered or repealed or amended by a competent Legislature or other authority.]
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1. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 51 (w.e.f. 3-1-1977).

Article 357 English Version

🔍 Article 357 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 18, अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग आपात उपबंध (EMERGENCY PROVISIONS) के बारे में है।

भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान विशेष शक्तियों का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय या संवैधानिक संकट के समय भारत के राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जा सकता है। ये प्रावधान सरकार को कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और संकट से निपटने के लिए अन्य असाधारण उपाय करने की अनुमति देते हैं।

आपातकालीन प्रावधानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

राष्ट्रीय आपातकाल: यह सबसे गंभीर प्रकार का आपातकाल है और इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।

राष्ट्रपति शासन: यह तब घोषित किया जा सकता है जब राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल: यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि वित्तीय संकट मौजूद है या होने की संभावना है तो इसे घोषित किया जा सकता है।

आपातकालीन प्रावधान भारतीय संविधान का एक विवादास्पद हिस्सा हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि संकट के समय में देश की रक्षा के लिए वे आवश्यक हैं, जबकि अन्य का तर्क है कि वे बहुत शक्तिशाली हैं और सरकार द्वारा उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

उपरोक्त सारे आपातकालीन प्रावधानों को अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360 तक में सम्मिलित किया गया है; और इस लेख में हम अनुच्छेद 357 को समझने वाले हैं;

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| अनुच्छेद 357 – अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन विधायी शक्तियों का प्रयोग (Exercise of legislative powers under Proclamation issued under article 356)

विपरीत परिस्थितियों में देश की संप्रभुताएकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की बात की गई है। जिसके तहत हमने समझा कि किस तरह से बाह्य आक्रमण के आधार पर आपातकाल लगाया जा सकता है। पहले आंतरिक अशांति के आधार पर भी लगाया जा सकता था लेकिन अब सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लगाया जा सकता है। हालांकि सशस्त्र विद्रोह भी आंतरिक अशांति को जन्म देता है।

इसी तरह से अनुच्छेद 356 के तहत बताया गया है कि अगर कोई राज्य संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप कार्य न करें या फिर किसी भी वजह से राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाये तो, अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र उस राज्य को अपने नियंत्रण में ले सकता है। यानी कि राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लगाया जा सकता है।

इसी का विस्तार है अनुच्छेद 357। इस अनुच्छेद के तहत कुल 2 खंड है। आइये इसे समझें;

अनुच्छेद 356 के खंड (1) के तहत जब राष्ट्रपति शासन लगाई जाती है तो राज्य के विधान-मंडल की शक्तियां संसद्‌ द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोग की जाती है लेकिन इस अनुच्छेद के तहत इसमें तीन व्यवस्थाएं की गई है;

(क) यह संसद के लिए सक्षम होगा कि वह राष्ट्रपति को कानून बनाने के लिए राज्य के विधानमंडल की शक्ति प्रदान करे और राष्ट्रपति को प्रत्यायोजित करने के लिए अधिकृत करे (ऐसी शर्तों के अधीन जो वह लागू करना उचित समझे)। और इस प्रकार प्रदत्त शक्ति का किसी अन्य प्राधिकारी को, राष्ट्रपति इस निमित विनिर्दिष्ट करेगा।

(ख) संघ या उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान करने या उन पर कर्तव्य अधिरोपित करने के लिए विधि बनाने की संसद्‌ को अथवा राष्ट्रपति को या ऐसे अन्य प्राधिकारी को, जिसमें ऐसी विधि बनाने की शक्ति उपखंड (क) के अधीन निहित है; क्षमता होगी।

(ग) जब लोक सभा सत्र में नहीं है तब राज्य की संचित निधि में से व्यय के लिए संसद्‌ की मंजूरी लंबित रहने तक ऐसे व्यय को प्राधिकृत करने की राष्ट्रपति को, क्षमता होगी।

इस खंड के तहत कहा गया है कि राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद्‌ द्वारा, अथवा राष्ट्रपति या खंड (1) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा, बनाई गई ऐसी विधि, जिसे संसद्‌ अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होता, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात्‌ तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक सक्षम विधान-मंडल या अन्य प्राधिकारी द्वारा उसका परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है।

कहने का अर्थ है कि राष्ट्रपति अथवा संसद अथवा अन्य किसी विशेष प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कानून, उस राज्य में राष्ट्रपति शासन खत्म होने के पश्चात भी प्रभाव में रहेगा। परंतु इसे राज्य विधायिका द्वारा वापस लिया जा सकता है अथवा परिवर्तित किया जा सकता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 357 अनुच्छेद 356 के तहत जारी राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के तहत विधायी शक्तियों के प्रयोग से संबंधित है। इसका मतलब है कि यह संसद के तरीके को नियंत्रित करता है और राष्ट्रपति राष्ट्रपति शासन के तहत एक राज्य के लिए कानून बना सकता है।

1. राष्ट्रपति शासन के दौरान विधायी शक्तियाँ:

  • संसद की शक्ति:
    • संसद राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडल के समान राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति प्रदान कर सकती है।
    • राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार अन्य अधिकारियों को भी इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए अधिकृत कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ:
    • राष्ट्रपति सीधे राज्य के लिए कानून बना सकते हैं, जिसमें वे सभी मामले शामिल होंगे जिन पर राज्य विधायिका राष्ट्रपति शासन से पहले कानून बना सकती थी।
    • ये कानून संसद की अनुमति के अनुसार राज्य विधायिका की सामान्य क्षमता से परे के मामलों तक भी विस्तारित हो सकते हैं।

2. कानूनों की निरंतरता:

  • अनुच्छेद 357 के तहत राष्ट्रपति या संसद द्वारा बनाया गया कोई भी कानून राष्ट्रपति शासन समाप्त होने के बाद भी लागू रहता है, जब तक कि राज्य विधानमंडल या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा निरस्त नहीं किया जाता।

3. सीमाएँ:

  • राज्य के लिए कानून बनाने की संसद द्वारा प्रदत्त शक्ति का उपयोग ऐसे कानून बनाने के लिए नहीं किया जा सकता है जो स्वयं संसद द्वारा भी नहीं बनाया जा सकता है, उदाहरण के लिए, संविधान में संशोधन करना।

अनुच्छेद 357 का महत्व:

  • राष्ट्रपति शासन के दौरान आवश्यक कानून बनाने और प्रशासनिक कार्यों को बनाए रखने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रपति शासन समाप्त होने के बाद सामान्य विधायी प्रक्रिया में सुचारू परिवर्तन सुनिश्चित करता है।

विवाद और बहस:

  • कुछ लोगों का तर्क है कि अनुच्छेद 357 राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है, जो संभावित रूप से राज्य की स्वायत्तता को प्रभावित करता है।
  • राष्ट्रपति शासन के तहत विधायी शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

विचार के लिए प्रश्न:

  • विशिष्ट उदाहरणों का विश्लेषण करें जहां अनुच्छेद 357 का उपयोग किया गया था और राज्य विधान पर इसका प्रभाव पड़ा।
  • अनुच्छेद 356 एवं अनुच्छेद 357 की व्याख्या करने वाले और इसकी सीमाएं निर्धारित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की जांच करें।
  • अनुच्छेद 357 में सुधार या उसके उपयोग को प्रतिबंधित करने पर चल रही बहस पर विचार करें।

तो यही है अनुच्छेद 357, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

◾ राष्ट्रपति शासन और बोम्मई मामला (President Rule)
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।