यह लेख Article 310 (अनुच्छेद 310) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 310 (Article 310) – Original
भाग 14 [संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं] अध्याय 1 – सेवाएं |
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310. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि— (1) इस संविधान द्वारा अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबंधित कोई पद या संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है और प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल 1*** के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है । (2) इस बात के होते हुए भी कि संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाला व्यक्ति, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल 2*** के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है, कोई संविदा जिसके अधीन कोई व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का या संघ या राज्य की सिविल सेवा का सदस्य नहीं है, ऐसे किसी पद को धारण करने के लिए इस संविधान के अधीन नियुक्त किया जाता है, उस दशा में, जिसमें, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल 3*** विशेष अर्हताओं वाले किसी व्यक्ति की सेवाएं प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझता है, यह उपबंध कर सकेगी कि यदि करार की गई अवधि की समाप्ति से पहले वह पद समाप्त कर दिया जाता है या ऐसे कारणों से, जो उसके किसी अवचार से संबंधित नहीं है, उससे वह पद रिक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे प्रतिकर दिया जाएगा। |
Part XIV [SERVICES UNDER THE UNION AND THE STATES] CHAPTER I — SERVICES |
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310. Tenure of office of persons serving the Union or a State— (1) Except as expressly provided by this Constitution, every person who is a member of a defence service or of a civil service of the Union or of an all India service or holds any post connected with defence or any civil post under the Union holds office during the pleasure of the President, and every person who is a member of a civil service of a State or holds any civil post under a State holds office during the pleasure of the Governor 1*** of the State. (2) Notwithstanding that a person holding a civil post under the Union or a State holds office during the pleasure of the President or, as the case may be, of the Governor 2*** of the State, any contract under which a person, not being a member of a defence service or of an all-India service or of a civil service of the Union or a State, is appointed under this Constitution to hold such a post may, if the President or the Governor 3***, as the case may be, deems it necessary in order to secure the services of a person having special qualifications, provide for the payment to him of compensation, if before the expiration of an agreed period that post is abolished or he is, for reasons not connected with any misconduct on his part, required to vacate that post. |
🔍 Article 310 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 14, अनुच्छेद 308 से लेकर अनुच्छेद 323 तक में विस्तारित है जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं (SERVICES UNDER THE UNION AND THE STATES) के बारे में है। जो कि दो अध्याय में बंटा हुआ है जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapters | Subject | Articles |
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I | सेवाएं (Services) | 308 – 314 |
II | लोक सेवा आयोग (Public Services Commissions) | 315 – 323 |
इस लेख में हम पहले अध्याय “सेवाएं (Services)” के तहत आने वाले अनुच्छेद 310 को समझने वाले हैं;
⚫ संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) |
| अनुच्छेद 310 – संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि (Tenure of office of persons serving the Union or a State)
Article 310 के तहत संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि का वर्णन है। इस अनुच्छेद के तहत कुल दो खंड आते हैं;
अनुच्छेद 310 के खंड (1) तहत कहा गया है कि इस संविधान द्वारा अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबंधित कोई पद या संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है और प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है।
इस खंड के तहत मुख्यतः दो बातें कही गई है;
पहला) प्रत्येक व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबंधित कोई पद या संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है।
दूसरी बात) प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है।
हालांकि यहां यह याद रखिए कि उपरोक्त प्रावधान, प्रसाद्पर्यंता के उन उपबंधों को छोड़कर है जिसे कि संविधान में कहीं और बताया गया है। जैसे कि अनुच्छेद 75(2) के तहत कहा गया है कि मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसाद्पर्यंत अपने पद धारण करेंगे, यानी कि राष्ट्रपति चाहे तो मंत्रियों को अपने पद से हटा सकता है।
Q. राष्ट्रपति या राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत (During the Pleasure of… ) का क्या मतलब है?
शब्द “राष्ट्रपति या राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत” एक कानूनी शब्द है जिसका अर्थ है कि किसी पदाधिकारी को राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा बिना कोई कारण बताए किसी भी समय पद से हटाया जा सकता है।
इस शब्द का प्रयोग भारतीय संविधान में कई संदर्भों में किया जाता है, जिसमें किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति, किसी राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति और किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति शामिल है।
“राष्ट्रपति या राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत” शब्द का प्रयोग राज्यपाल को इन कार्यालयधारकों पर बहुत अधिक शक्ति प्रदान करता है। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह शक्ति पूर्ण (Absolute) नहीं है।
राष्ट्रपति या राज्यपाल बिना किसी कारण के किसी पदाधिकारी को नहीं हटा सकते। राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास हटाने का वैध कारण होना चाहिए, और निष्कासन कानून के अनुसार होना चाहिए।
अनुच्छेद 310 के खंड (2) तहत कहा गया है कि इस बात के होते हुए भी कि संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाला व्यक्ति, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है, कोई संविदा जिसके अधीन कोई व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का या संघ या राज्य की सिविल सेवा का सदस्य नहीं है, ऐसे किसी पद को धारण करने के लिए इस संविधान के अधीन नियुक्त किया जाता है, उस दशा में, जिसमें, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल विशेष अर्हताओं वाले किसी व्यक्ति की सेवाएं प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझता है, यह उपबंध कर सकेगी कि यदि करार की गई अवधि की समाप्ति से पहले वह पद समाप्त कर दिया जाता है या ऐसे कारणों से, जो उसके किसी अवचार से संबंधित नहीं है, उससे वह पद रिक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे प्रतिकर दिया जाएगा।
खंड (1) के तहत हमने समझा कि संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाला व्यक्ति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करता है। इस खंड के तहत इस प्रावधान के बावजूद भी निविदा (Contract) के तहत ऐसे व्यक्ति को सिविल पद पर नियुक्त किया जा सकता है।
राष्ट्रपति या राज्यपाल इस संबंध में विशेष उपबंध कर सकता है कि यदि ऐसे व्यक्ति को करार के तहत तय वक्त से पहले यदि पद से हटा दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को प्रतिकर (compensation) दिया जाएगा। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब वो कारण अवचार (misconduct) से संबंधित न हो।
तो यही है अनुच्छेद 310 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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Question 1: Article 310 of the Indian Constitution deals with:
(a) The power of the Union Government to levy surcharges on the taxes levied by the State Governments
(b) The power of the State Governments to levy taxes on goods and services
(c) The power of the Union Government to collect and distribute the Compensation Cess
(d) The tenure of office of persons serving the Union or a State
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Question 2: The doctrine of pleasure under Article 310 of the Indian Constitution means that:
(a) Persons serving the Union or a State can be dismissed from their positions at any time
(b) Persons serving the Union or a State have no security of tenure
(c) Persons serving the Union or a State are not entitled to any rights or benefits
(d) All of the above
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Question 3: The doctrine of pleasure has been criticized for:
(a) Making it difficult for persons serving the Union or a State to work without fear or favor
(b) Undermining the independence of the judiciary
(c) Leading to the politicization of the civil services
(d) All of the above
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |