Article 297 of the Constitution | अनुच्छेद 297 व्याख्या

यह लेख Article 297 (अनुच्छेद 297) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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Article 297 अनुच्छेद 297

📜 अनुच्छेद 297 (Article 297) – Original

भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 3 – संपति, संविदाएं अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं ऑर वाद
1[297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र के संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना— (1) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि या अनन्य आर्थिक क्षेत्र में समुद्र के नीचे की सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण की जाएंगी।

(2) भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अन्य सभी संपत्ति स्रोत भी संघ में निहित होंगे और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण किए जाएंगे।

(3) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्रों की सीमाएं वे होंगी जो संसद्‌ द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं।]
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1.  संविधान (चालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 का धारा 2 द्वारा (27-5-1976) से प्रतिस्थापित।

अनुच्छेद 297 हिन्दी संस्करण

Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 3 – PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS
1[297. Things of value within territorial waters or continental shelf and resources of the exclusive economic zone to vest in the Union— (1) All lands, minerals and other things of value underlying the ocean within the
territorial waters, or the continental shelf, or the exclusive economic zone, of India shall vest in the Union and be held for the purposes of the Union.

(2) All other resources of the exclusive economic zone of India shall also vest in the Union and be held for the purposes of the Union.

(3) The limits of the territorial waters, the continental shelf, the exclusive economic zone, and other maritime zones, of India shall be such as may be specified, from time to time, by or under any law made by Parliament.]
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1. Subs. by the Constitution (Fortieth Amendment) Act, 1976, s. 2 (w.e.f. 27-5-1976).

Article 296 English Version

🔍 Article 297 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iवित्त (Finance)Article 264 – 291
IIउधार लेना (Borrowing)Article 292 – 293
IIIसंपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS)Article 294 – 300
IVसंपत्ति का अधिकार (Rights to Property)Article 300क
[Part 11 of the Constitution]

जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।

संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;

  • कर व्यवस्था (Taxation System)
  • विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
  • संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
  • भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
  • संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।

संविधान के इस भाग (भाग 12) का तीसरा अध्याय, संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) से संबंधित है। इस लेख में हम अनुच्छेद 297 को समझने वाले हैं;

केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations)
Closely Related to Article 297

| Article 297 – राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र के संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना (Things of value within territorial waters or continental shelf and resources of the exclusive economic zone to vest in the Union)

Article 297 के तहत राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र के संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होने का वर्णन है। इस अनुच्छेद के तहत कुल तीन खंड आते हैं;

अनुच्छेद 297 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि या अनन्य आर्थिक क्षेत्र में समुद्र के नीचे की सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण की जाएंगी।

इस खंड के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि भारत के क्षेत्रीय जल (territorial waters), महाद्वीपीय शेल्फ (continental shelf) और विशेष आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zone) के अंदर सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान वस्तुएं संघ की संपत्ति बन जाएंगी और केंद्र सरकार के उद्देश्यों के लिए रखी जाएंगी।

यहां पर तीन टर्म्स का इस्तेमाल किया गया है; 1) राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड (Territorial Waters), 2) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) एवं 3) विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone); आइये इसे समझें;

राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड (Territorial Waters) किसे कहते हैं?

Territorial Waters for Article 297
image credit medium

राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या प्रादेशिक जल अनौपचारिक रूप से जल का एक क्षेत्र है जहां एक संप्रभु राज्य का अधिकार क्षेत्र होता है। प्रादेशिक जल समुद्र और महासागरों के उस क्षेत्र को कवर करता है जो उससे सटे देश द्वारा नियंत्रित होते हैं और उस क्षेत्र के ऊपर हवाई क्षेत्र का अधिकार भी उस देश के पास होता है जो उस समुद्री क्षेत्र को नियंत्रित करता है।

प्रादेशिक क्षेत्राधिकार आधार रेखा के निकटतम बिंदु से 12 समुद्री मील तक फैला हुआ है।

महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) किसे कहते हैं?

भारत का महाद्वीपीय शेल्फ महासागरीय क्षेत्रों का समुद्री तल (sea ​​bed) और उपमृदा (subsoil) है जो इसके राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड (Territorial Waters) की सीमा से परे फैला हुआ है। इसमें मग्नतट शामिल है, जो अपेक्षाकृत उथले पानी का क्षेत्र है।

भारत के महाद्वीपीय शेल्फ की चौड़ाई तमिलनाडु से 35 किमी, उत्तरी आंध्र प्रदेश से 60 किमी और दीघा के आसपास 120 किमी है। शेल्फ के उत्तरी क्षेत्र में हल्की ढलान है और दक्षिण में मध्यम खड़ी है।

भारतीय राज्य गुजरात में सबसे अधिक महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र है, जो लगभग 184000 वर्ग किलोमीटर है। गुजरात में महाद्वीपीय शेल्फ की कुल लंबाई 1214.7 किलोमीटर है।

महाद्वीपीय शेल्फ आमतौर पर रेत, गाद और कीचड़ की परत से ढके होते हैं। उनकी सतहें कुछ राहत दिखाती हैं, जिसमें छोटी-छोटी पहाड़ियाँ और कटकें होती हैं जो उथले अवसादों और घाटी जैसे गर्तों के साथ वैकल्पिक होती हैं।

विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) किसे कहते हैं?

EEZ Article 297
Image Credit National Maritime Foundation

भारत का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) एक ऐसा क्षेत्र है जो आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है, जो प्रादेशिक समुद्र के निकट और उससे परे है। EEZ में 200 समुद्री मील से अधिक का प्रादेशिक समुद्र या महाद्वीपीय शेल्फ शामिल नहीं है।

EEZ भारत को तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज, वाणिज्यिक मछली पकड़ने और अन्य समुद्री संसाधनों तक अधिक पहुंच प्रदान करता है। यह नेविगेशन, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य देशों पर रणनीतिक लाभ की स्वतंत्रता भी प्रदान करता है। 

EEZ के भीतर, भारत को यह अधिकार है: 

  • मछली पकड़ना
  • खनन करना
  • आप्रवासन, प्रदूषण, सीमा शुल्क और कराधान के क्षेत्रों में कानून लागू करना
  • पर्यावरण संरक्षण इत्यादि।

समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (Unclos) उच्च समुद्र को EEZ, contiguous area और क्षेत्रीय जल से परे के क्षेत्र के रूप में परिभाषित करता है। 

अनुच्छेद 297 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zone) के अन्य सभी संपत्ति स्रोत भी संघ में निहित होंगे और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण किए जाएंगे।

अनुच्छेद 297 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड (Territorial Waters), महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) और अन्य सामुद्रिक क्षेत्रों की सीमाएं वे होंगी जो संसद्‌ द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं। अभी क्या सीमाएं है उसकी चर्चा हमने ऊपर की है।

कुल मिलाकर, अनुच्छेद 297 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र सरकार के पास अपने कार्यों को पूरा करने और देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक संसाधन हैं। भारत के क्षेत्रीय जल, महाद्वीपीय शेल्फ और EEZ के भीतर संसाधन महत्वपूर्ण हैं और इनका उपयोग राजस्व उत्पन्न करने, नौकरियां पैदा करने और सभी भारतीयों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है।

तो यही है अनुच्छेद 297 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

Related MCQs with Explanation

Question 1: The purpose of vesting the resources of the territorial waters and continental shelf in the Union Government under Article 297 is to:

(a) Protect India’s sovereignty and national interests
(b) Ensure the sustainable development of marine resources
(c) Promote economic development and generate revenue for the Union Government
(d) All of the above




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Answer: (d) Explanation: The purpose of vesting the resources of the territorial waters and continental shelf in the Union Government under Article 297 is to protect India’s sovereignty and national interests, ensure the sustainable development of marine resources, promote economic development and generate revenue for the Union Government.


Question 2: The Union Government has exclusive rights to explore, exploit, and conserve the resources of the territorial waters and continental shelf under Article 297.

(a) True
(b) False




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Answer: True Explanation: The Union Government has exclusive rights to explore, exploit, and conserve the resources of the territorial waters and continental shelf under Article 297. This means that the Union Government has the sole authority to issue licenses for exploration and exploitation of marine resources, and it has the responsibility to protect and manage these resources in a sustainable manner.


Question 3: Article 297 is an important provision of the Indian Constitution that helps to:

(a) Protect India’s maritime boundaries and resources
(b) Promote the sustainable development of the ocean
(c) Strengthen India’s economic position in the region
(d) All of the above




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Answer: (d) Explanation: Article 297 is an important provision of the Indian Constitution that helps to protect India’s maritime boundaries and resources, promote the sustainable development of the ocean, strengthen India’s economic position in the region, and ensure that the benefits of marine resources are shared equitably among the coastal States.


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मौलिक अधिकार बेसिक्स
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।