यह लेख Article 296 (अनुच्छेद 296) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 296 (Article 296) – Original
भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 3 – संपति, संविदाएं अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद |
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296. राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोद्भूत संपत्ति— इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्र में कोई संपत्ति, जो यदि यह संविधान प्रवर्तन में नहीं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधिकारवान् स्वामी के अभाव में स्वामीविहीन होने से, यथास्थिति, हिज मजेस्टी को या किसी देशी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, यदि वह संपत्ति किसी राज्य में स्थित है तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य दशा में संघ में निहित होगी; परंतु कोई संपत्ति, जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार हिज मजेस्टी को या देशी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी तब, यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए वह उस समय प्रयुक्त या धारित थीं, संघ के थे तो वह संघ में या किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी। स्पष्टीकरण – इस अनुच्छेद में, “शासक” और “देशी राज्य” पदों के वही अर्थ हैं जो अनुच्छेद 363 में हैं। |
Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 3 – PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS |
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296. Property accruing by escheat or lapse or as bona vacantia— Subject as hereinafter provided, any property in the territory of India which, if this Constitution had not come into operation, would have accrued to His Majesty or, as the case may be, to the Ruler of an Indian State by escheat or lapse, or as bona vacantia for want of a rightful owner, shall, if it is property situate in a State, vest in such State, and shall, in any other case, vest in the Union: Provided that any property which at the date when it would have so accrued to His Majesty or to the Ruler of an Indian State was in the possession or under the control of the Government of India or the Government of a State shall, according as the purposes for which it was then used or held were purposes of the Union or of a State, vest in the Union or in that State. Explanation.—In this article, the expressions “Ruler” and “Indian State” have the same meanings as in article 363. |
🔍 Article 296 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | वित्त (Finance) | Article 264 – 291 |
II | उधार लेना (Borrowing) | Article 292 – 293 |
III | संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) | Article 294 – 300 |
IV | संपत्ति का अधिकार (Rights to Property) | Article 300क |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।
संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;
- कर व्यवस्था (Taxation System)
- विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
- संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
- भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
- संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।
संविधान के इस भाग (भाग 12) का तीसरा अध्याय, संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) से संबंधित है। इस लेख में हम अनुच्छेद 296 को समझने वाले हैं;
⚫ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations) |
| अनुच्छेद 296 – राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोद्भूत संपत्ति (Property accruing by escheat or lapse or as bona vacantia)
Article 296 के तहत राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोद्भूत संपत्ति (Property accruing by escheat or lapse or as bona vacantia) का वर्णन है। यह अनुच्छेद अपने पिछले अनुच्छेद (अनुच्छेद 294 एवं अनुच्छेद 295) से संबन्धित है, इसीलिए पहले उसे अवश्य पढ़ें;
अनुच्छेद 296 के तहत कहा गया है कि इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्र में कोई संपत्ति, जो यदि यह संविधान प्रवर्तन में नहीं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधिकारवान् स्वामी के अभाव में स्वामीविहीन होने से, यथास्थिति, हिज मजेस्टी को या किसी देशी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, यदि वह संपत्ति किसी राज्य में स्थित है तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य दशा में संघ में निहित होगी;
यदि यह संविधान लागू नहीं हुआ होता तो भारत के राज्यक्षेत्र की कोई ऐसी संपत्ति हो सकती थी जो कि राजगामी या व्यपगत होने से या स्वामीविहीन होने से, ब्रिटिश क्राउन को या फिर किसी देशी राज्य के शासक को चला गया होता, लेकिन चूंकि यह संविधान लागू हो चुका है इसीलिए ऐसी संपत्ति अगर किसी राज्य में स्थित है तो वह राज्य को जाएगा और किसी अन्य दशा में संघ को जाएगा।
हालांकि यह व्यवस्था एक परंतुक के अधीन है और वो कुछ इस तरह से है;
कोई संपत्ति, जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार ब्रिटिश क्राउन को या देशी राज्य के शासक को चला गया होता, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी तब, यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए वह उस समय प्रयुक्त या धारित थीं, संघ के थे तो वह संघ में या किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी।
कहने का अर्थ है कि अगर यह संविधान लागू नहीं हुआ होता तो कुछ प्रकार की संपत्तियाँ (स्वामिविहीन) या तो ब्रिटिश क्राउन को चला गया होता या फिर देशी राज्य के शासक को चला गया होता (जैसा कि हमने ऊपर समझा)।
लेकिन संविधान लागू होने के अभाव में जिस दिन यह संपत्ति ब्रिटिश क्राउन या देशी राजा को जा सकता था, संविधान लागू होने के कारण उस दिन वह संपत्ति भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के कब्जे में आ गया। ऐसे में जिन उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग या धारण संघ द्वारा किया गया था वो संघ को जाएगा। इसी तरह से जिन उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग या धारण राज्य द्वारा किया गया था, उन प्रयोजनों के लिए वह राज्य को जाएगा।
यहां यह याद रखिए कि इस अनुच्छेद में, जो “शासक (Ruler)” और “देशी राज्य (Indian State)” पदों का इस्तेमाल किया गया है उसका वही अर्थ हैं जो अनुच्छेद 363 में हैं।
Q. राजगामी (escheat) या स्वामीविहीन (bona vacantia) का क्या अर्थ है?
राजगामी (escheat): एस्चीट या राजगामी एक कानूनी शब्द है जो किसी व्यक्ति की परित्यक्त या लावारिस संपत्तियों, संपत्ति, खातों या धन को सरकार को हस्तांतरित करने को संदर्भित करता है। जब संपत्ति लंबे समय तक दावा न की गई हो, या कोई उत्तराधिकारी या लाभार्थी न हो, तो राजगामी का अधिकार दिया जा सकता है।
राजगामी कानून अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं, लेकिन आम तौर पर राज्य को किसी की संपत्ति पर दावा करने में लगभग पांच साल लग जाते हैं।
Escheat का ही एक संदर्भ होता है स्वामीविहीन (bona vacantia);
स्वामीविहीन (bona vacantia) या बोना वैकेंटिया का तात्पर्य ऐसी संपत्ति से है जो कि बिना मालिक की संपत्ति है, जैसे परित्यक्त या लावारिस संपत्ति।
शब्द “बोना वैकेंटिया” का उपयोग किसी व्यक्ति की संपत्ति के स्वामित्व की स्थिति का वर्णन करने के लिए भी किया जा सकता है, जब वे बिना वसीयत किए मर जाते हैं और कोई जीवित रिश्तेदार नहीं छोड़ते हैं। जब सही मालिक या उत्तराधिकारी आगे नहीं आते, सरकार आम तौर पर संबंधित संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेती है।
वहीं बात Lapse या व्यपगत की करें तो Lapse एक वसीयत या योजना के प्रभावी होने में विफलता है क्योंकि लाभार्थी की वसीयतकर्ता से पहले मृत्यु हो जाती है या फिर लाभार्थी संपत्ति प्राप्त करने में असमर्थ होता है।
तो यही है अनुच्छेद 296 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |