यह लेख Article 290 (अनुच्छेद 290) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 290 (Article 290) – Original
भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 1 – वित्त (प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध) |
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290. कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन— जहां इस संविधान के उपबंधों के अधीन किसी न्यायालय या आयोग के व्यय अथवा किसी व्यक्ति को या उसके संबंध में, जिसने इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत में क्राउन के अधीन अथवा ऐसे प्रारंभ के पश्चात् संघ के या किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा की है, संदेय पेंशन भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि पर भारित है वहां, यदि— (क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागत: सेवा की है, या (ख) किसी राज्य की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है, तो, यथास्थिति, उस राज्य की संचित निधि पर अथवा, भारत की संचित निधि अथवा अन्य राज्य की संचित निधि पर, व्यय या पेंशन के संबंध में उतना अंशदान, जितना करार पाया जाए या करार के अभाव में, जितना भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, भारित किया जाएगा और उसका उस निधि में से संदाय किया जाएगा। |
Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 1 – Finance (Miscellaneous Financial Provisions) |
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290. Adjustment in respect of certain expenses and pensions— Where under the provisions of this Constitution the expenses of any court or Commission, or the pension payable to or in respect of a person who has served before the commencement of this Constitution under the Crown in India or after such commencement in connection with the affairs of the Union or of a State, are charged on the Consolidated Fund of India or the Consolidated Fund of a State, then, if— (a) in the case of a charge on the Consolidated Fund of India, the court or Commission serves any of the separate needs of a State, or the person has served wholly or in part in connection with the affairs of a State; or (b) in the case of a charge on the Consolidated Fund of a State, the court or Commission serves any of the separate needs of the Union or another State, or the person has served wholly or in part in connection there shall be charged on and paid out of the Consolidated Fund of the State or, as the case may be, the Consolidated Fund of India or the Consolidated Fund of the other State, such contribution in respect of the expenses or pension as may be agreed, or as may in default of agreement be determined by an arbitrator to be appointed by the Chief Justice of India. |
🔍 Article 290 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | वित्त (Finance) | Article 264 – 291 |
II | उधार लेना (Borrowing) | Article 292 – 293 |
III | संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) | 294 – 300 |
IV | संपत्ति का अधिकार (Rights to Property) | 300क |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।
संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;
- कर व्यवस्था (Taxation System)
- विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
- संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
- भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
- संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।
संविधान के इस भाग (भाग 12) के पहले अध्याय को तीन उप-अध्यायों (Sub-chapters) में बांटा गया है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Sub-Chapters Title | Articles |
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साधारण (General) | Article 264 – 267 |
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) | Article 268 – 281 |
प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) | 282 – 291* |
इस लेख में हम अनुच्छेद 290 को समझने वाले हैं; जो कि प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) के तहत आता है। हालांकि मोटे तौर पर समझने के लिए आप नीचे दिये गए लेख से स्टार्ट कर सकते हैं;
⚫ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations) |
| अनुच्छेद 290 – कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन (Adjustment in respect of certain expenses and pensions)
Article 290 के तहत कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन (Adjustment in respect of certain expenses and pensions) का वर्णन है।
अनुच्छेद 290 के तहत कहा गया है कि जहां इस संविधान के प्रावधानों के तहत किसी अदालत या आयोग का खर्च या ऐसे व्यक्ति को या उसके संबंध में देय पेंशन, (जिसने भारत में क्राउन के तहत इस संविधान के प्रारंभ होने से पहले या संघ या राज्य के मामलों के संबंध में ऐसे प्रारंभ के बाद सेवा की है) भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि पर लगाया जाता है, तब, यदि;
(क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागत: सेवा की है; या,
(ख) किसी राज्य की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है,
तो, ऐसी स्थिति में उस राज्य की संचित निधि पर अथवा, भारत की संचित निधि अथवा अन्य राज्य की संचित निधि पर, खर्च या पेंशन के संबंध में उतना अंशदान, जितना करार द्वारा तय किए जाये या करार के अभाव में, जितना भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा अवधारित किया जाये, भारित किया जाएगा और उसका उस निधि में से पेमेंट किया जाएगा।
कुल मिलाकर बात यह है कि अनुच्छेद 290 कुछ अदालतों या आयोगों के संबंध में खर्चों और पेंशन को समायोजित करने के प्रावधान का वर्णन करता है। और इसमें वे लोग भी शामिल है जिन्होंने भारतीय संविधान लागू होने से पहले या बाद में क्राउन के तहत सेवा की है। इससे जो खर्च उत्पन्न होता है वह खर्च या पेंशन भारत की संचित निधि या राज्य सरकार की संचित निधि पर लगाए जाते हैं।
इस अनुच्छेद के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि कोई अदालत या आयोग किसी राज्य की अलग-अलग जरूरतों को पूरा करता है या फिर कोई व्यक्ति राज्य के मामलों के संबंध में सेवा करता है और उनके खर्च या पेंशन भारत के संचित निधि पर लगाए जाते हैं, तो राज्य सरकार को इन खर्चों के लिए योगदान या पेंशन देना होगा।
यही बात तब भी लागू होती है जब कोई न्यायालय या आयोग संघ या किसी अन्य राज्य की जरूरतों को पूरा करता है और उनके खर्च या पेंशन राज्य के संचित निधि पर लगाए जाते हैं।
यहां यह याद रखिए कि यदि राज्य और केंद्र सरकार उपरोक्त मामले में किसी करार पर सहमत नहीं हो पाती हैं, तो मामले का निर्धारण भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा किया जाएगा।
अनुच्छेद 290 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संघ और राज्य सरकारों द्वारा अपने कार्यों को पूरा करने में होने वाला खर्च संबंधित सरकारों द्वारा वहन किया जाए।
अनुच्छेद 290 के तहत अपने स्वयं के खर्चों का भुगतान करने की केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि वे लोगों के प्रति जवाबदेह हैं। जब सरकारें अपने स्वयं के खर्चों का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार होती हैं, तो वे इस बात को लेकर अधिक सावधान रहती हैं कि वे पैसा कैसे खर्च करती हैं। इससे भ्रष्टाचार और बर्बादी को रोकने में मदद मिलती है।
तो यही है अनुच्छेद 290 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |