यह लेख Article 289 (अनुच्छेद 289) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 289 (Article 289) – Original
भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 1 – वित्त (प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध) |
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289. राज्यों की संपत्ति और आय को संघ के कराधान से छूट— (1) किसी राज्य की संपत्ति और आय को संघ के करों से छूट होगी । (2) खंड (1) की कोई बात संघ को किसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबंध में अथवा उससे संबंधित किन्हीं क्रियाओं के संबंध में अथवा ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त या अधिभुक्त किसी संपत्ति के संबंध में अथवा उसके संबंध में प्रोद्भुत या उद्धत किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसी मात्रा तक, यदि कोई हो, जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे, अधिरोपित करने या कर का अधिरोपण प्राधिकृत करने से नहीं राकेगी। (3) खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के किसी ऐसे वर्ग को लागू नहीं होगी जिसके बारे में संसद् विधि द्वारा घोषणा करे कि वह सरकार के मामूली कृत्यों का आनुषंगिक है। |
Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 1 – Finance (Miscellaneous Financial Provisions) |
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289. Exemption of property and income of a State from Union taxations— (1) The property and income of a State shall be exempt from Union taxation. (2) Nothing in clause (1) shall prevent the Union from imposing, or authorising the imposition of, any tax to such extent, if any, as Parliament may by law provide in respect of a trade or business of any kind carried on by, or on (3) Nothing in clause (2) shall apply to any trade or business, or to any class of trade or business, which Parliament may by law declare to be incidental to the ordinary functions of Government. |
🔍 Article 289 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | वित्त (Finance) | Article 264 – 291 |
II | उधार लेना (Borrowing) | Article 292 – 293 |
III | संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) | 294 – 300 |
IV | संपत्ति का अधिकार (Rights to Property) | 300क |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।
संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;
- कर व्यवस्था (Taxation System)
- विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
- संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
- भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
- संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।
संविधान के इस भाग (भाग 12) के पहले अध्याय को तीन उप-अध्यायों (Sub-chapters) में बांटा गया है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Sub-Chapters Title | Articles |
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साधारण (General) | Article 264 – 267 |
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) | Article 268 – 281 |
प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) | 282 – 291* |
इस लेख में हम अनुच्छेद 289 को समझने वाले हैं; जो कि प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) के तहत आता है। हालांकि मोटे तौर पर समझने के लिए आप नीचे दिये गए लेख से स्टार्ट कर सकते हैं;
⚫ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations) |
| अनुच्छेद 289 – राज्यों की संपत्ति और आय को संघ के कराधान से छूट (Exemption of property and income of a State from Union taxations)
Article 289 के तहत राज्यों की संपत्ति और आय को संघ के कराधान से छूट (Exemption of property and income of a State from Union taxations) का वर्णन है। इस अनुच्छेद के तहत कुल तीन खंड आते हैं।
Article 289 Clause 1 Explanation
अनुच्छेद 289 के खंड (1) तहत कहा गया है कि किसी राज्य की संपत्ति और आय को संघ के करों से छूट होगी।
इसका मतलब यह है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों की संपत्ति और आय पर कर नहीं लगा सकती है। इस छूट का उद्देश्य राज्य सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना है कि वे अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम हैं।
कल्पना कीजिए कि केंद्र सरकार एक पिता है और राज्य सरकारें उसकी संतान हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 289 कहता है कि पिता अपने बच्चों की संपत्ति और आय पर कर नहीं लगा सकता। इसका मतलब यह है कि बच्चे अपने पिता को कर चुकाए बिना, अपनी संपत्ति और आय का उपयोग अपनी इच्छानुसार करने के लिए स्वतंत्र हैं।
यह छूट महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बच्चों को बढ़ने और विकसित होने के लिए आवश्यक वित्तीय स्वतंत्रता देती है। यह यह भी सुनिश्चित करता है कि बच्चों के पास अपनी जरूरतों को पूरा करने और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त धन हो।
Article 289 Clause 2 Explanation
अनुच्छेद 289 के खंड (2) तहत कहा गया है कि खंड (1) की कोई बात संघ को किसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबंध में अथवा उससे संबंधित किन्हीं क्रियाओं के संबंध में अथवा ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त या अधिभुक्त किसी संपत्ति के संबंध में अथवा उसके संबंध में प्रोद्भुत या उद्धत किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसी मात्रा तक, यदि कोई हो, जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे, अधिरोपित करने या कर का अधिरोपण प्राधिकृत करने से नहीं राकेगी।
खंड (1) के तहत राज्य की संपत्ति और आय को संघ के करों से छूट दी गई है, लेकिन इस खंड में केंद्र को कुछ मामलों में शक्ति दी गई है जिसके तहत संसद की मदद से केंद्र दिए गए मामलों में टैक्स लगा सकती है;
संघ, किसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबंध में अथवा उससे संबंधित किन्हीं क्रियाओं के संबंध में अथवा ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त या अधिभुक्त (occupied) किसी संपत्ति के संबंध में अथवा उसके संबंध में प्रोद्भुत (accruing) या उद्भूत (arising) किसी आय के बारे में कर की व्यवस्था कर सकती है।
कहने का अर्थ है कि यह खंड यह स्पष्ट करता है कि केंद्र सरकार के पास केवल राज्य सरकार की कुछ गतिविधियों पर कर लगाने की शक्ति है। विशेष रूप से, इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी भी प्रकार के व्यापार या व्यवसाय, या ऐसे व्यापार या व्यवसाय से जुड़े किसी भी संचालन पर कर लगा सकती है।
इसके अलावा, केंद्र सरकार ऐसे व्यापार या व्यवसाय के संचालन के लिए इस्तेमाल की गई या कब्जे में ली गई किसी भी संपत्ति, या ऐसे व्यापार या व्यवसाय के संबंध में उत्पन्न होने वाली किसी भी आय पर भी कर लगा सकती है।
◾ यदि राज्य सरकार किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों, जैसे कोई फैक्ट्री या व्यवसाय चलाने में लगी हुई है, तो केंद्र सरकार के पास उस व्यवसाय के संचालन के लिए उपयोग की जाने वाली संपत्ति पर कर लगाने की शक्ति है। इसमें व्यवसाय के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि, भवन और उपकरण शामिल हो सकते हैं। केंद्र सरकार के पास उस व्यवसाय से होने वाली किसी भी आय पर कर लगाने की भी शक्ति है।
यहां यह याद रखिए कि, राज्य सरकार की गतिविधियों पर कर लगाने की केंद्र सरकार की यह शक्ति पूर्ण नहीं है। बल्कि केंद्र सरकार केवल उस सीमा तक कर लगा सकती है, जब तक वह संसद की अनुमति से पारित कानून द्वारा अधिकृत हो।
कुल मिलाकर बात यह है कि यह खंड एक प्रकार से खंड (1) का अपवाद है जहां खंड (1) के तहत राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित की गई है वहीं इस खंड की मदद से उसपर किन्ही मामलों में संघ द्वारा नियंत्रण के रास्ते खोले गए हैं।
Article 289 Clause 3 Explanation
अनुच्छेद 289 के खंड (3) तहत कहा गया है कि खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के किसी ऐसे वर्ग को लागू नहीं होगी जिसके बारे में संसद् विधि द्वारा घोषणा करे कि वह सरकार के मामूली कृत्यों का आनुषंगिक है।
खंड (2) में जो कुछ भी लिखा हुआ है वो किसी भी व्यापार या व्यवसाय या व्यापार या व्यवसाय के किसी भी वर्ग पर लागू नहीं होगा, जिसे संसद कानून द्वारा सरकार के सामान्य कार्यों के लिए आकस्मिक घोषित (incidental to the ordinary functions of Government) कर सकती है।
यहां पर जो “सरकार के सामान्य कार्यों के लिए आकस्मिक” टर्म का इस्तेमाल किया गया है इसका आशय उन उन कार्यों से है जो कि सरकार के लिए प्राथमिक नहीं है लेकिन फिर भी सरकार के लिए अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए आवश्यक हैं।
जैसे कि सरकार आधिकारिक दस्तावेजों को मुद्रित करने के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस संचालित करती है तो इस प्रकार की गतिविधियों को सरकार के सामान्य कार्यों के लिए आकस्मिक माना जाएगा।
यह संसद पर निर्भर करता है कि वह यह निर्धारित करे कि किस विशिष्ट प्रकार के व्यापार या व्यवसाय को सरकार के सामान्य कार्यों के लिए आकस्मिक माना जाएगा। और इसलिए इस व्यवस्था को खंड (2) में उल्लिखित प्रतिबंधों या सीमाओं से छूट दी गई है।
तो यही है अनुच्छेद 289 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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