यह लेख Article 288 (अनुच्छेद 288) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 288 (Article 288) – Original
भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 1 – वित्त (प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध) |
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288. जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट — (1) वहां तक के सिवाय जहां तक राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा उपबंध करे, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की कोई प्रवृत्त विधि किसी जल या विद्युत के संबंध में, जो किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के विनियमन या विकास के लिए किसी विद्यमान विधि द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा स्थापित किसी प्राधिकारी द्वारा संचित, उत्पादित, उपभुक्त, वितरित या विक्रीत की जाती है, कोई कर अधिरोपित नहीं करेगी या कर का अधिरोपण प्राधिकृत नहीं करेगी। स्पष्टीकरण – इस खंड में, “किसी राज्य की कोई प्रवृत्त विधि” पद के अंतर्गत किसी राज्य की ऐसी विधि होगी जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई है और जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे वह या उसके कोई भाग उस समय बिल्कुल या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में न हो । (2) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, खंड (1) में वर्णित कोई कर अधिरोपित कर सकेगा या ऐसे कर का अधिरोपण प्राधिकृत कर सकेगा, किन्तु ऐसी किसी विधि का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे जाने के पश्चात् उसकी अनुमति न मिल गई हो और यदि ऐसी कोई विधि ऐसे करों की दरों और अन्य प्रसंगतियों को किसी प्राधिकारी द्वारा, उस विधि के अधीन बनाए जाने वाले नियमों या आदेशों द्वारा, नियत किए जाने का उपबंध करती है तो वह विधि ऐसे किसी नियम या आदेश के बनाने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति अभिप्राप्त किए जाने का उपबंध करेगी। |
Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 1 – Finance (Miscellaneous Financial Provisions) |
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288. Exemption from taxation by States in respect of water or electricity in certain cases— Save in so far as the President may by order otherwise provide, no law of a State in force immediately before the commencement of this Constitution shall impose, or authorise the imposition of, a tax in respect of any water or electricity stored, generated, consumed, distributed or sold by any authority established by any existing law or any law made by Parliament for regulating or developing any inter-State river or river-valley. Explanation.—The expression “law of a State in force” in this clause shall include a law of a State passed or made before the commencement of this Constitution and not previously repealed, notwithstanding that it or parts of it may not be then in operation either at all or in particular areas. (2) The Legislature of a State may by law impose, or authorise the imposition of, any such tax as is mentioned in clause (1), but no such law shall have any effect unless it has, after having been reserved for the consideration of the President, received his assent; and if any such law provides for the fixation of the rates and other incidents of such tax by means of rules or orders to be made under the law by any authority, the law shall provide for the previous consent of the President being obtained to the making of any such rule or order. |
🔍 Article 288 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | वित्त (Finance) | Article 264 – 291 |
II | उधार लेना (Borrowing) | Article 292 – 293 |
III | संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) | 294 – 300 |
IV | संपत्ति का अधिकार (Rights to Property) | 300क |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।
संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;
- कर व्यवस्था (Taxation System)
- विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
- संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
- भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
- संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।
संविधान के इस भाग (भाग 12) के पहले अध्याय को तीन उप-अध्यायों (Sub-chapters) में बांटा गया है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Sub-Chapters Title | Articles |
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साधारण (General) | Article 264 – 267 |
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) | Article 268 – 281 |
प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) | 282 – 291* |
इस लेख में हम अनुच्छेद 288 को समझने वाले हैं; जो कि प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) के तहत आता है। हालांकि मोटे तौर पर समझने के लिए आप नीचे दिये गए लेख से स्टार्ट कर सकते हैं;
⚫ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations) |
| अनुच्छेद 288 – जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट (Exemption from taxation by States in respect of water or electricity in certain cases)
Article 288 के तहत जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट का वर्णन है। इस अनुच्छेद के तहत कुल दो खंड आते हैं।
Article 288 Clause 1 Explanation
अनुच्छेद 288 के खंड (1) तहत कहा गया है कि वहां तक के सिवाय जहां तक राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा उपबंध करे, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की कोई प्रवृत्त विधि* किसी जल या विद्युत के संबंध में, जो किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के विनियमन या विकास के लिए किसी विद्यमान विधि द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा स्थापित किसी प्राधिकारी द्वारा संचित, उत्पादित, उपभुक्त, वितरित या विक्रीत की जाती है, कोई कर अधिरोपित नहीं करेगी या कर का अधिरोपण प्राधिकृत नहीं करेगी।
इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू किसी राज्य का कोई भी कानून किसी भी मौजूदा कानून या किसी अंतर-राज्यीय नदी को विनियमित करने के लिए संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्राधिकरण द्वारा बेचे गए किसी भी पानी या बिजली के संबंध में कर नहीं लगाएगा। हालांकि इसमें एक अपवाद यह है कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा इस संबंध में उपबंध कर सकता है।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले बनाई गई कोई विधि पानी या बिजली पर टैक्स की मंजूरी नहीं दे सकता है। वो भी तब जब किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के विनियमन या विकास के लिए कोई विधि विद्यमान है या संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि है।
इस खंड का प्रावधान ऐसे पानी और बिजली को ध्यान में रखता है जो किसी मौजूदा कानून या संसद द्वारा पारित किसी कानून द्वारा गठित किसी प्राधिकरण द्वारा संग्रहीत, उत्पादित, उपभोग, वितरण या बेचा जाता है।
मोटी बात यह है कि संसद के पास किसी भी अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी को नियंत्रित करने या विकसित करने के उद्देश्य से कानून बनाने की शक्ति निहित है। हालांकि जैसा कि हमने समझा इसमें एक अपवाद भी है और वो अपवाद यह है कि जब भारत के राष्ट्रपति एक विशेष आदेश द्वारा एक अलग प्रावधान बनाने का निर्णय लेते हैं, तो फिर वह प्रावधान काम करेगा।
*यहां यह याद रखिए कि यहां जो “राज्य की कोई प्रवृत्त विधि (any law in force of the state)” का उल्लेख हुआ है, इसका आशय एक ऐसे कानून से है जो इस संविधान की शुरुआत से पहले पारित किया गया था। लेकिन उस कानून को खत्म नहीं किया गया था।
Article 288 Clause 2 Explanation
अनुच्छेद 288 के खंड (2) तहत कहा गया है कि किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, खंड (1) में वर्णित कोई कर अधिरोपित कर सकेगा या ऐसे कर का अधिरोपण प्राधिकृत कर सकेगा, किन्तु ऐसी किसी विधि का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे जाने के पश्चात् उसकी अनुमति न मिल गई हो और यदि ऐसी कोई विधि ऐसे करों की दरों और अन्य प्रसंगतियों को किसी प्राधिकारी द्वारा, उस विधि के अधीन बनाए जाने वाले नियमों या आदेशों द्वारा, नियत किए जाने का उपबंध करती है तो वह विधि ऐसे किसी नियम या आदेश के बनाने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति अभिप्राप्त किए जाने का उपबंध करेगी।
किसी राज्य का विधानमंडल कानून द्वारा ऐसा कोई भी कर लगा सकता है जैसा कि खंड (1) में उल्लिखित है, लेकिन ऐसे किसी भी कानून का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक कि इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने के बाद उनकी सहमति प्राप्त न हो जाए।
लेकिन यदि ऐसा कोई कानून मौजूद है जो किसी प्राधिकारी द्वारा विधि के तहत स्थापित किए जाने वाले नियमों या आदेशों की मदद से ऐसे टैक्स की दरों को तय करने का प्रावधान करता है, तो कानून में यह व्यवस्था करना होगा कि ऐसे किसी भी नियम या आदेश को स्थापित करने से पहले राष्ट्रपति की पूर्व सहमति प्राप्त किया जाना चाहिए।
तो यही है अनुच्छेद 288 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |