यह लेख Article 277 (अनुच्छेद 277) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें। [साल 1956 में अनुच्छेद 278 को खत्म कर दिया गया है।]
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📜 अनुच्छेद 277 (Article 277) – Original
भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 1 – वित्त (संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण) |
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277. व्यावृत्ति — ऐसे कर, शुल्क, उपकर या फीसें, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की सरकार द्वारा अथवा किसी नगरपालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा उस राज्य, नगरपालिका, जिला या अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिए विधिपूर्वक उदगृहित की जा रही थी, इस बात के होते हुए भी कि वे कर, शुल्क, उपकर या फीसें संघ सूची में वर्णित हैं, तब तक उदगृहित की जाती रहेंगी और उन्हीं प्रयोजनों के लिए उपयोजित की जाती रहेंगी जब तक संसद, विधि द्वारा, इसके प्रतिकूल उपबंध नहीं करती है। 278. [कुछ वित्तीय विषयों के संबंध में पहली अनुसूची के भाग ख के राज्यों से करार।] – संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) निरसित । |
Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 1 – Finance (Distribution of revenues between the Union and the States) |
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277. Savings — Any taxes, duties, cesses or fees which, immediately before the commencement of this Constitution, were being lawfully levied by the Government of any State or by any municipality or other local authority or body for the purposes of the State, municipality, district or other local area may, notwithstanding that those taxes, duties, cesses or fees are mentioned in the Union List, continue to be levied and to be applied to the same purposes until provision to the contrary is made by Parliament by law. 278. [Agreement with States in Part B of the First Schedule with regard to certain financial matters.].—Omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch.(w.e.f. 1-11-1956). |
🔍 Article 277 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | वित्त (Finance) | Article 264 – 291 |
II | उधार लेना (Borrowing) | Article 292 – 293 |
III | संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) | 294 – 300 |
IV | संपत्ति का अधिकार (Rights to Property) | 300क |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।
संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;
- कर व्यवस्था (Taxation System)
- विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
- संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
- भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
- संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।
संविधान के इस भाग (भाग 12) के पहले अध्याय को तीन उप-अध्यायों (Sub-chapters) में बांटा गया है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Sub-Chapters Title | Articles |
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साधारण (General) | Article 264 – 267 |
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) | Article 268 – 281 |
प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) | 282 – 291* |
इस लेख में हम अनुच्छेद 277 को समझने वाले हैं; जो कि संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) के तहत आता है। हालांकि मोटे तौर पर समझने के लिए आप नीचे दिये गए लेख से स्टार्ट कर सकते हैं;
⚫ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations) |
| अनुच्छेद 277 – व्यावृत्ति (Savings)
अनुच्छेद 277 के तहत व्यावृत्ति (Savings) का वर्णन है। दरअसल संविधान लागू होने से पहले भी कई प्रकार के Taxes थे जो कि विभिन्न राज्यों एवं नगरपालिकाओं आदि में चल रहा था। संविधान लागू होने के बाद चूंकि नई व्यवस्था सामने आई ऐसे में पुराने क़ानूनों के साथ उसका टकराव न हो इसीलिए इस अनुच्छेद के तहत कुछ विशेष व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 277 के तहत कहा गया है कि ऐसे कर, शुल्क, उपकर या फीसें, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की सरकार द्वारा अथवा किसी नगरपालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा उस राज्य, नगरपालिका, जिला या अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिए विधिपूर्वक उदगृहित की जा रही थी, इस बात के होते हुए भी कि वे कर, शुल्क, उपकर या फीसें संघ सूची में वर्णित हैं, तब तक उदगृहित की जाती रहेंगी और उन्हीं प्रयोजनों के लिए उपयोजित की जाती रहेंगी जब तक संसद, विधि द्वारा, इसके प्रतिकूल उपबंध नहीं करती है।
अनुच्छेद 277 का मुख्य लक्ष्य भारतीय संविधान में बदलावों के कारण करों या वित्त में होने वाले टकराव या व्यवधान को रोकना है। सरल शब्दों में, यह संविधान लागू होने के बाद करों और वित्त के सुचारु परिवर्तन को सुनिश्चित करने का एक प्रावधान है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 277 संविधान के प्रारंभ से पहले वैध रूप से लगाए गए करों की व्यावृत्ति (Savings) से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि कोई भी कर, शुल्क, या उपकर जो किसी राज्य की सरकार, या किसी नगर पालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकरण या निकाय द्वारा संविधान के प्रारंभ से पहले, राज्य, नगर पालिका, जिला या अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिए कानूनी रूप से लगाया जा रहा था।
भले ही उन करों, कर्तव्यों, उपकरों या शुल्कों का उल्लेख संघ सूची में किया गया हो, फिर भी इसे तब तक लगाए जाते रहेंगे और उन्हीं उद्देश्यों के लिए लागू किए जाते रहेंगे जब तक कि संसद द्वारा इसके विपरीत प्रावधान नहीं किया जाता।
इसका मतलब यह है कि कोई भी कर जो 1950 में संविधान लागू होने से पहले राज्य सरकारों या स्थानीय अधिकारियों द्वारा कानूनी रूप से लगाया जा रहा था, तब तक लगाया जा सकता है जब तक कि भारत की संसद इसके विपरीत कानून पारित नहीं कर देती।
संविधान लागू होने के बाद करों के संग्रह में कोई व्यवधान न हो यह सुनिश्चित करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 277 डाला गया था। यह राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों को कुछ वित्तीय स्वायत्तता भी देता है।
कल्पना कीजिए कि भारतीय संविधान एक नया भवन है जो अभी-अभी बना है। राज्य सरकारें और स्थानीय अधिकारी घर के किरायेदारों की तरह हैं। घर बनने से पहले, किरायेदार अपने-अपने घरों में रहते थे और अपना कर चुकाते थे। जब संविधान रूपी घर बन गया, तो किरायेदार इस नए घर में चले गए लेकिन जो कर वो पहले चुकाता था उसे भुगतान करना जारी रखा।
संविधान का अनुच्छेद 277 पट्टा समझौते के एक खंड की तरह है जो कहता है कि किरायेदार अपने करों का भुगतान तब तक करना जारी रख सकते हैं जब तक कि मकान मालिक (केंद्र सरकार) अन्यथा न कहे।
हालांकि यह याद रखिए कि इसका उपयोग केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। इसका उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच करों को विभाजित करने के तरीके में बदलाव आया हो। इसका उपयोग उन स्थितियों में नहीं किया जा सकता जहां कराधान शक्तियों के वितरण में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
दूसरे शब्दों में, इसका एक बहुत ही विशिष्ट उपयोग मामला है और इसे उन सभी मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है जहां कराधान शक्तियों के वितरण में कोई बदलाव नहीं होता है।
तो यही है अनुच्छेद 277 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |