यह लेख Article 269 (अनुच्छेद 269) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 269 (Article 269) – Original
भाग 12 [वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद] अध्याय 1 – वित्त (संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण) |
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269. संघ द्वारा उदगृहित और संगृहीत किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर— 1[(1) 2[अनुच्छेद 269क में यथा उपबंधित के सिवाय,] माल के क्रय] या विक्रय पर कर और माल के परेषण पर कर, भारत सरकार द्वारा उदगृहित और संगृहीत किए जाएंगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप दिए जाएंगे या सौंप दिए गए समझे जाएंगे। स्पष्टीकरण – इस खंड के प्रयोजनों के लिए— (क) “माल के क्रय या विक्रय पर कर” पद से समाचारपत्रों से भिन्न माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा क्रय या विक्रय अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है ; (ख) “माल के परेषण पर कर” पद से माल के परेषण पर (चाहे परेषण उसके करने वाले व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किया गया हो) उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा परेषण अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है। (2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर के शुद्ध आगम वहां तक के सिवाय, जहां तक वे आगम संघ राज्यक्षेत्रों से प्रात हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किंतु उन राज्याँ को सौंप दिए जाएंगे जिनके भीतर वह कर उस वर्ष में उदग्रहणीय हैं और वितरण के ऐसे सिद्धांतों के अनुसार, जो संसद् विधि द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच वितरित किए जाएंगे।] 3[(3) संसद, यह अवधारित करने के लिए कि 4[माल का क्रय या विक्रय या परेषण] कब अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है, विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी।] |
Part XII [FINANCE, PROPERTY, CONTRACTS AND SUITS] Chapter 1 – Finance (Distribution of revenues between the Union and the States) |
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269. Taxes levied and collected by the Union but assigned to the States —1[(1) Taxes on the sale or purchase of goods and taxes on the consignment of goods 2[except as provided in article 269A] shall be levied and collected by the Government of India but shall be assigned and shall be deemed to have been assigned to the States on or after the 1st day of April, 1996 in the manner provided in clause (2). Explanation.—For the purposes of this clause,— (2) The net proceeds in any financial year of any such tax, except in so far as those proceeds represent proceeds attributable to Union territories, shall not form part of the Consolidated Fund of India, but shall be assigned to the States within which that tax is leviable in that year, and shall be distributed among those States in accordance with such principles of distribution as may be formulated by Parliament by law.] 3[(3) Parliament may by law formulate principles for determining when a 4[sale or purchase of, or consignment of goods] takes place in the course of inter-State trade or commerce.] |
🔍 Article 269 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 12, अनुच्छेद 264 से लेकर अनुच्छेद 300क तक कुल 4अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | वित्त (Finance) | Article 264 – 291 |
II | उधार लेना (Borrowing) | Article 292 – 293 |
III | संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) | 294 – 300 |
IV | संपत्ति का अधिकार (Rights to Property) | 300क |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद (PROPERTY, CONTRACTS, RIGHTS, LIABILITIES, OBLIGATIONS AND SUITS) के बारे में है।
संविधान का यही वह भाग है जिसके अंतर्गत हम निम्नलिखित चीज़ें पढ़ते हैं;
- कर व्यवस्था (Taxation System)
- विभिन्न प्रकार की निधियाँ (different types of funds)
- संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States)
- भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की व्यवस्था (Borrowing arrangement by Government of India or State Government)
- संपत्ति का अधिकार (Rights to Property), इत्यादि।
संविधान के इस भाग (भाग 12) के पहले अध्याय को तीन उप-अध्यायों (Sub-chapters) में बांटा गया है। जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Sub-Chapters Title | Articles |
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साधारण (General) | Article 264 – 267 |
संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) | Article 268 – 281 |
प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध (Miscellaneous Financial Provisions) | 282 – 291* |
इस लेख में हम अनुच्छेद 269 को समझने वाले हैं; जो कि संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण (Distribution of revenues between the Union and the States) के तहत आता है। हालांकि मोटे तौर पर समझने के लिए आप नीचे दिये गए लेख से स्टार्ट कर सकते हैं;
⚫ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध Center-State Financial Relations) |
| अनुच्छेद 269 – संघ द्वारा उदगृहित और संगृहीत किंतु राज्यों को सौँपे जाने वाले कर (Taxes levied and collected by the Union but assigned to the States)
अनुच्छेद 269 के तहत संघ द्वारा उदगृहित और संगृहीत किंतु राज्यों को सौँपे जाने वाले कर का वर्णन है। इस अनुच्छेद के तहत कुल तीन खंड आते हैं;
अनुच्छेद 269 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि अनुच्छेद 269क में यथा उपबंधित के सिवाय, माल के क्रय या विक्रय पर कर और माल के परेषण पर कर, भारत सरकार द्वारा उदगृहित और संगृहीत किए जाएंगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप दिए जाएंगे या सौंप दिए गए समझे जाएंगे।
यहां मुख्य रूप से दो बातें हैं;
पहली बात) माल के क्रय या विक्रय पर कर भारत सरकार द्वारा उदगृहित और संगृहीत किए जाएंगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप दिए जाएंगे या सौंप दिए गए समझे जाएंगे।
वस्तुओं की खरीद एवं बिक्री पर जो टैक्स लगेगा वो भारत सरकार द्वारा लगाया जाएगा और उसे एकत्र भी भारत सरकार द्वारा ही किया जाएगा लेकिन यह जो टैक्स कलेक्शन होगा वो भारत के संचित निधि का भाग नहीं बनेगा बल्कि इसे राज्यों को सौंप दिया जाएगा। किस मेथड से सौंपा जाएगा इसे इसी अनुच्छेद के खंड (2) के तहत संसद कानून बनाकर तय करेगा।
दूसरी बात) माल के परेषण पर कर भारत सरकार द्वारा उदगृहित और संगृहीत किए जाएंगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप दिए जाएंगे या सौंप दिए गए समझे जाएंगे।
वस्तुओं की खेप (Consignment) पर जो टैक्स लगेगा वो भारत सरकार द्वारा लगाया जाएगा और उसे एकत्र भी भारत सरकार द्वारा ही किया जाएगा लेकिन यह जो टैक्स कलेक्शन होगा वो भारत के संचित निधि का भाग नहीं बनेगा बल्कि इसे राज्यों को सौंप दिया जाएगा। किस मेथड से सौंपा जाएगा इसे इसी अनुच्छेद के खंड (2) के तहत संसद कानून बनाकर तय करेगा।
Consignment : goods that are being sent to somebody/something (भेजा गया माल; प्रेषित माल)
यहां पर तीन बातें याद रखने योग्य हैं;
1) इस खंड की जो बातें है वो सभी प्रकार की वस्तुओं पर लागू होती है लेकिन उन वस्तुओं को छोड़कर जिसका जिक्र अनुच्छेद 269A के तहत किया गया है। अनुच्छेद 269A के तहत GST को अन्तर्राजीय व्यापार (Interstate trade) में सुनिश्चित किया गया है (इस अनुच्छेद को भी अवश्य पढ़ें;)
2) इस खंड में “वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर टैक्स” की जो बात की गई है उन वस्तुओं में समाचार पत्र नहीं आते हैं। और दूसरी बात वस्तुओं पर इस तरह का टैक्स तभी लगता है जब वो क्रय या विक्रय अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य (interstate trade or commerce) के दौरान होता है ;
3) इस खंड में “वस्तुओं के परेषण पर टैक्स (tax on consignment of goods)” की जो बात की गई है इसका मतलब उस दशा में टैक्स से है जिसमें ऐसा परेषण (consignment) अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है। भले ही परेषण उसके करने वाले व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किया गया हो। चाहे परेषण/खेप इसे बनाने वाले व्यक्ति के लिए हो या किसी अन्य व्यक्ति के लिए।
अनुच्छेद 269 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर के शुद्ध आगम वहां तक के सिवाय, जहां तक वे आगम संघ राज्यक्षेत्रों से प्रात हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किंतु उन राज्याँ को सौंप दिए जाएंगे जिनके भीतर वह कर उस वर्ष में उदग्रहणीय हैं और वितरण के ऐसे सिद्धांतों के अनुसार, जो संसद् विधि द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच वितरित किए जाएंगे।
ऊपर बताए गए व्यवस्था के अनुसार किसी टैक्स की किसी भी वित्तीय वर्ष में शुद्ध प्राप्ति (Net proceeds), भारत के समेकित निधि का हिस्सा नहीं बनेगी, बल्कि उन राज्यों को सौंपी जाएगी जिनके भीतर उस वर्ष कर लगाया जाएगा, और उन राज्यों के बीच वितरित किया जाएगा। वितरण के ऐसे सिद्धांत जो संसद द्वारा कानून द्वारा तैयार किए जा सकते हैं।
हालांकि केंद्रशासित प्रदेशों के टैक्स कलेक्शन को इसमें शामिल नहीं किया गया है। यानि कि UT से प्राप्त इस प्रकार के टैक्स आय को संचित निधि का हिस्सा माना जाएगा।
अनुच्छेद 269 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि संसद, यह अवधारित करने के लिए कि माल का क्रय या विक्रय या परेषण कब अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है, विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी।
संसद कानून द्वारा यह निर्धारित करने के लिए सिद्धांत बना सकती है कि अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल की बिक्री या खरीद, या खेप कब होती है।
उम्मीद है यहां तक पढ़ने के बाद आपको चीज़ें समझ में नहीं आई होगी, इसीलिए आइये अब इसे जड़ से समझते हैं;
Article 269 and Taxation System in India:
भारतीय संविधान में, छठा संशोधन अधिनियम, 1956 के माध्यम से कुछ संशोधन किए गए जिससे निम्नलिखित चीज़ें स्पष्ट हुई;
1) अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल की बिक्री या खरीद पर टैक्स को स्पष्ट रूप से संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र के दायरे में लाया गया;
2) राज्य के भीतर वस्तुओं की बिक्री या खरीद पर कर लगाने के संबंध में राज्य विधानसभाओं की शक्तियों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति संसद को हासिल हुई, वहां जहां अंतरराज्यीय व्यापार या वाणिज्य में वस्तुओं का विशेष महत्व हो।
इस संशोधन ने संसद को यह निर्धारित करने के लिए सिद्धांत बनाने के लिए अधिकृत किया कि बिक्री या खरीद अंतर-राज्य व्यापार या वाणिज्य के दौरान या फिर निर्यात या आयात के दौरान या किसी राज्य के बाहर कब होती है।
इसी के आलोक में केंद्रीय बिक्री कर (CST) अधिनियम, 1956 (The Central Sales Tax Act, 1956) अधिनियमित किया गया जो जनवरी 1957 से लागू हुआ।
इस अधिनियम से निम्नलिखित बातें तय की गई;
1) अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान या किसी राज्य के बाहर या आयात या निर्यात के दौरान माल की बिक्री या खरीद कब होती है।
2) अंतर राज्य बिक्री कर (interstate sales tax) कितना होगा;
3) अंतरराज्यीय व्यापार या वाणिज्य में विशेष महत्व की वस्तुएं (Items of special importance in interstate trade or commerce): इत्यादि।
केंद्रीय बिक्री कर (CST) क्या है? |
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केंद्रीय बिक्री कर (CST) से तात्पर्य अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य (Inter-state trade and commerce) के दौरान उत्पन्न बिक्री पर लगाए जाने वाले कर से है। आसान भाषा में कहें तो यह वह कर है जो किसी व्यक्ति को अंतर-राज्यीय व्यापार के माध्यम से बेची जाने वाली वस्तुओं की बिक्री पर देना होता है। केंद्रीय बिक्री कर एक अप्रत्यक्ष कर है, जो ग्राहकों पर मूल आधारित कर (origin based tax) है और यह उस राज्य में देय होता है जहां कोई विशेष उत्पाद बेचा जाता है। सीएसटी केवल अंतरराज्यीय लेनदेन पर लगाया जाता है और राज्य के भीतर कोई भी लेनदेन या माल का आयात/निर्यात इसके दायरे में नहीं आता है। |
CST लगाने के तहत अर्जित होने वाला संपूर्ण राजस्व उस राज्य द्वारा एकत्र और रखा जाता है जहां बिक्री शुरू होती है। यहां याद रखिए कि अधिनियम में आयात और निर्यात पर कराधान शामिल नहीं है।
केंद्रीय बिक्री कर की दरें सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं और अधिनियम के पहली बार लागू होने के बाद से इसमें कई बदलाव हुआ है।
◾ मूल केंद्रीय बिक्री कर की दर 1% थी, जिसे बाद में पर 2% और फिर जुलाई 1975 से 4% किया गया। 2007 में, केंद्रीय बिक्री कर दरों में एक संशोधन किया गया, जिससे बिक्री कर पहले के 4% से घटकर 3% हो गया।
जून 2008 में कर की दर में और कमी की गई और दर घटकर 2% कर दी गई। सीएसटी दरों में कमी का एक प्रमुख कारण वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने की आवश्यकता थी।
दरअसल CST एक मूल आधारित कर (origin based tax) है, जो मूल्य वर्धित कर (value added Tax) के साथ असंगत है। क्योंकि VAT इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड व्यवस्था पर आधारित एक गंतव्य आधारित कर (destination based tax) है।
मूल्य वर्धित कर (value added Tax) या VAT क्या है? |
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प्रत्येक वस्तु उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले उत्पादन और वितरण के विभिन्न चरणों से गुजरती है। उत्पादन और वितरण श्रृंखला के प्रत्येक चरण में कुछ मूल्य जोड़ा जाता है, यानि कि Value Add की जाती है। उदाहरण के लिए, एक कुल्हाड़ी लोहे की तुलना में अधिक मूल्यवान है, और लोहा, लौह अयस्क से अधिक मूल्यवान है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि लौह अयस्क से लोहा तभी बना जब उसमें कुछ Value Add किया गया। इसी तरह से लोहे से कुल्हाड़ी तभी बना जब उसमें कुछ वैल्यू जोड़ा गया। तो जो ये VAT यानि कि मूल्य वर्धित कर है यह प्रत्येक चरण में इस मूल्यवर्धन पर लगने वाला कर है। कहने का अर्थ है कि जिस कर व्यवस्था में कर की वसूली मूल्यवर्धन के प्रत्येक चरण (उत्पादन या वितरण) पर किया जाता है उसे ही VAT कहा जाता है। इस प्रणाली के तहत, एक डीलर अपनी बिक्री पर कर एकत्र करता है, और उसने जो अपना समान खरीदा है और उस पर जो टैक्स उसने चुकाया है उसे काटकर शेष राशि को सरकार को दे देता है। इसे एक उपभोग कर (consumption tax) भी कहा जाता है, क्योंकि यह अंततः अंतिम उपभोक्ता द्वारा वहन किया जाता है। कहने का अर्थ है कि VAT एक बहु-बिंदु कर प्रणाली (multi-point tax system) है जिसमें बिक्री के प्रत्येक बिंदु पर खरीद पर भुगतान किए गए कर के संग्रह का प्रावधान है। |
◾ यहां तक हमने ये समझा कि एक राज्य से दूसरे राज्य को समान बेचे या खरीदे जाने पर जो टैक्स संकलित होता है उसके बंटवारे में राज्यों के बीच कोई विवाद न हो जाये इसीलिए केंद्र इसे खुद संभालती है।
जैसे कि एक राज्य से एक व्यापारी दूसरे राज्य के एक व्यापारी को समान बेचते हैं, सामान पाने वाला व्यापारी तो उस समान को अपने राज्य में बेचेगा और टैक्स का पैसा भी उसी राज्य में रह जाएगा।
अब पहले वाला राज्य (जहां से सामान भेजा गया था), उस दूसरे राज्य में तो टैक्स वसूलने जाएगा नहीं, क्योंकि वो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
ऐसे स्थिति में Article 269 के तहत केंद्र सरकार वहाँ से टैक्स वसूलती है और जिस राज्य को ये मिलना चाहिए उस राज्य को दे देते हैं। इसे कहते है केन्द्रीय बिक्री कर (सेंट्रल सेल्स टैक्स)।
◾ CST केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है और सातवीं अनुसूची की संघ सूची के अंतर्गत आता है, लेकिन यह उस राज्य द्वारा प्रशासित होता है जिसमें एक विशेष बिक्री शुरू होती है।
अंतरराज्यीय व्यापार से जुड़े सामानों का व्यापार करने वाले व्यापारी से ऐसे लेनदेन पर राज्य बिक्री कर और केंद्रीय बिक्री कर दोनों का भुगतान करने की अपेक्षा की जाती है।
तो स्थिति ये थी कि अन्तर्राजीय व्यापार एवं वाणिज्य पर CST लगती थी जो कि केंद्र द्वारा लगाया जाता था। इसी तरह से राज्य अपनी सूची के अंतर्गत आने वाली कई विषयों पर राज्य बिक्री कर (State Sales Tax) भी लगाता था। जैसे कि सातवीं अनुसूची की राज्य सूची की प्रविष्टि 54।
अब सवाल ये आता है कि जब जब केन्द्रीय बिक्री कर (Central Sales Tax) एवं राज्यों के अपने बिक्री कर थे फिर VAT की क्या जरूरत थी?
मूल्य वर्धित कर (VAT) क्यों लाया गया?
सामान्य बिक्री कर (यानि कि Origin based sales tax system) का एक बड़ा नुकसान क्रमपाती प्रभाव (cascading effect) था। इसे उदाहरण से समझिए;
मान लीजिये कि आप एक स्वेटर बनाने वाली कंपनी चलाते हैं। कच्चे माल (रॉ मटिरियल) के रूप में आपको ऊन की जरूरत पड़ती है।
आप 100 रूपये का ऊन आयात करते हैं, मान लीजिये 10 प्रतिशत अभी आयात कर (import tax) है इसीलिए आपको 110 रूपये पेमेंट करना पड़ता है।
अब आपने उससे एक स्वेटर बना लिया। स्वेटर बनाने में आपको 40 रूपये खर्चा करना पड़ा। मतलब कि अब वो उत्पाद 150 रूपये का हो गया। (110+40)।
इससे पहले कि वो मार्केट में बिकने के लिए जाएगा उस पर आपको केन्द्रीय उत्पाद कर (Central excise tax) देना पड़ेगा। मान लेते हैं, अगर वो भी 10 प्रतिशत है तो आपको 15 रूपये और केंद्र सरकार को देना होगा। (क्योंकि 150 का 10 प्रतिशत 15 होता है।)
इस प्रकार उस स्वेटर कि कीमत 165 रूपये हो गयी। अब आप खुद सामान तो बेचेंगे नहीं, वो तो रिटेलर बेचेगा। मान लीजिये रिटेलर 35 रुपया प्रॉफ़िट लेके उसे मकेट में बेचेगा। तो अब उस स्वेटर की कीमत 200 रूपये हो गयी।
अब जिस राज्य में ये स्वेटर बिकेगा वो राज्य इस पर बिक्री कर (sales tax) लगा देगा। अगर वो भी 10 प्रतिशत हो तो प्रॉडक्ट की अंतिम कीमत 220 रूपये हो जाती है। अब आप देखिये तो हर एक पॉइंट पर टैक्स देना पर रहा है।
इसकी खामी ये है कि इसमें टैक्स पर टैक्स देना पड़ रहा है। आप देखिये जब सबसे पहले उस पर 10 प्रतिशत टैक्स देना पड़ा था तो उसकी कीमत 110 रूपये हो गयी थी।
आगे जब इसकी कीमत 150 रुपए हो गयी तो पहले वाला 10 रूपये का टैक्स तो इसमें जुड़ा हुआ था न। फिर जब आगे उस पर 10 प्रतिशत टैक्स लगा तो उस 10 रूपये पर भी तो टैक्स देना पड़ा। जो कि खुद एक टैक्स था और पहले ही टैक्स के रूप में दे दिया गया था। इसी प्रकार जब आगे उस प्रॉडक्ट की कीमत 200 रूपये हो गयी तो उसमे 15 रूपये तो टैक्स का था।
फिर जब आगे उसपर 10 प्रतिशत टैक्स लगा तो उस 15 रूपये पर तो टैक्स देना ही पड़ा साथ ही साथ पहले वाले 10 रूपये पर जो टैक्स लगा था उसपर भी फिर से टैक्स देना पड़ा। समझ रहे हैं न। इसी तरह फिर से आगे जब इस पर टैक्स लगेगा तो पिछले वाले टैक्स पर भी टैक्स देना पड़ेगा।
तो हुआ न टैक्स पर टैक्स। इसी को क्रमपाती प्रभाव (cascading effect) कहते हैं। इस तरह टैक्स पर टैक्स लगने से वस्तु की अंतिम कीमत बहुत ज्यादा हो जाती थी।
इसी को खत्म करने के लिए इस पूरे सिस्टम को VAT सिस्टम से रिप्लेस कर दिया गया। VAT को 1 अप्रैल 2005 से भारतीय कराधान प्रणाली में शुरू किया गया और मौजूदा सामान्य बिक्री कर कानूनों को मूल्य वर्धित कर अधिनियम (2005) और संबंधित नियमों से बदल दिया गया।
VAT की खूबसूरती ये थी कि इससे कैस्केडिंग इफैक्ट खत्म हो जाता है। कैसे हो जाता है? आइये इसे फिर से उसी उदाहरण से समझते हैं।
VAT में Cascading Effect कैसे खत्म होता है?
शुरू में 10 प्रतिशत टैक्स देने के बाद उस रॉ मटिरियल की कीमत 110 रूपये हो गयी थी। अब उसमें और 40 रुपया खर्च करके जब आपने एक स्वेटर बनाया तो उसकी कीमत 150 हो गयी। अब आपको सेंट्रल एक्साइज़ (Central excise) पे करना है।
अगर पुराने वाले सिस्टम से देखें तो आपको 15 रूपये पे करना पड़ता। पर VAT होने के कारण अब जो 10 प्रतिशत टैक्स लगेगा वो 150 रूपये पर न लगकर 140 पर ही लगेगा। क्योंकि 10 रूपये टैक्स के तो आप पहले ही पे कर चुके हैं तो उसपर आपको फिर से टैक्स नहीं देना है। इसीलिए अब देखें तो 140 का 10 प्रतिशत 14 होता है। अब उसकी कीमत 154 रूपये हो गयी। जो कि याद कीजिये तो पहले 165 रूपये हो गयी थी।
अब ये जो 14 रूपये आपको एक्सट्रा देना पड़ा है इसे ही उत्पादन कर देयता (output tax liability) कहा जाता है।
जो 10 रूपये आप पहले ही पे कर चुके हैं उसे ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट‘ कहा जाता है। तो कुल मिलाकर यहाँ जो आपको VAT देना है। वो होगा मात्र 4 रूपये। वो क्यूँ ?
क्यूंकी VAT का मतलब ही होता है वैल्यू एडेड टैक्स या मूल्य वर्धित कर। मतलब ये कि आपने उस रॉ मटिरियल में जितना वैल्यू एड या फिर जितना आपने उसका मूल्य बढ़ाया है,
उसी पर आपको टैक्स देना पड़ेगा न कि पूरे वस्तु की कीमत पर। अब यहाँ देखें तो आपने 110 रूपये का रॉ मटिरियल खरीदा था, जिसमें से 10 रूपये टैक्स का था।
आपने उसमें जोड़ा कितना तो 40 रूपये। तो अब आपको इस 40 पर ही टैक्स पे करना है न कि 150 पर। इसीलिए 40 का 10 परसेंट 4 रूपये होता है। और आपको मात्र 4 रूपये सरकार को देने हैं। यहीं VAT है। इसे निकालने का सीधा सा फॉर्मूला है,
VAT = Output tax liability – Input tax credit
इस फॉर्मूला के हिसाब से भी देखें तो output tax liability 14 रूपये था जबकि इनपुट टैक्स क्रेडिट जो कि पहले ही पे कर दिया गया है। वो 10 रूपये था।
इसीलिए जब आप VAT निकालेंगे तो निकलेगा 14 – 10 = 4 रूपये। ये 4 रूपये आपको बस एक्साइज़ टैक्स के रूप में पे करना है जबकि टोटल कीमत देखें तो 154 रूपये हो गया।
मान लीजिये कि 36 रुपया रिटेलर इसमें से फायदा लेगा तो इसकी कीमत 190 रूपये हो गया। और हमने अब तक कुल 14 रूपये टैक्स चुकाए हैं। 10 रूपये पहले चरण में और 4 रूपये दूसरे चरण में।
अब तीसरे चरण की बात करते हैं। 190 रूपया जो कीमत हुआ है चूंकि 14 रूपये उसमें पहले ही जुड़ चुका हैं। इसलिए अब जो इसपे टैक्स लगेगा वो सिर्फ 176 रुपये पर ही लगेगा।
अब यहाँ भी 10 प्रतिशत टैक्स लगेगा। इसीलिए इसकी अंतिम कीमत हो गयी 176+17.6 = 193.6 रुपया।
यहाँ 17.6 रूपये जो हैं वो output tax liability है। वहीं अब तक जो टैक्स चुका चूकें हैं, जो कि 14 रुपया है वो है इनपुट टैक्स क्रेडिट, इसीलिए VAT = output tax liability – इनपुट टैक्स क्रेडिट; 17.6 – 14 = 3.6 रूपये। यानी कि यहाँ पर आपको कुल 3.6 रूपये ही चुकाने पड़ेंगे।
◾ वैसे भी अगर आप देखेंगे तो दूसरे चरण में उनकी कीमत थी 154 रूपये और उसमें जो वैल्यू एड किया गया था। वो था 36 रूपये। और वैल्यू एडेड टैक्स का मतलब ही होता है। वैल्यू जो उसमें जोड़ा गया है उस पर लगने वाला कर। यहाँ वो 36 रूपये है और 36 का 10 प्रतिशत निकाले तो वो होता है 3.6 रूपये। इसी को कहते हैं VAT सिस्टम।
◾ अब दोनों में आपको फर्क पता चल गया होगा। सिंगल पॉइंट टैक्स सिस्टम वाले केस में देखें तो वहाँ तीन चरण के बाद जो अंतिम उत्पाद की कीमत थी वो थी 220 रूपये, जबकि उसमें भी तीनों स्तर पर 10 प्रतिशत टैक्स ही लगाया गया था।
वहीं VAT वाले केस में देखें तो यहाँ भी तीनों स्तर पर 10 प्रतिशत कर ही लगाया गया है। पर यहाँ अंतिम उत्पाद की कीमत मात्र 193.6 रूपये ही है। मतलब कि लगभग 26 रूपये का अंतर। और ये अंतर क्यों आया क्योंकि टैक्स पर टैक्स लगने वाली सिस्टम खत्म हो गयी। यानी कि कैस्केडिग इफैक्ट खत्म हो गया।
ये जो 26 रूपये की कमी आई है। उसका फायदा भी जनता को ही मिलेगा। और VAT लाने की एक बड़ी वजह यही थी।
अब आपके मन में ये सवाल आ सकता है कि जब VAT इतना अच्छा था। वस्तु की कीमते कम हो गयी थी। तो फिर इसे जीएसटी में क्यों बदला गया। तो इसका जवाब ये है कि VAT लगने के बाद भी कुछ खामियाँ थी टैक्स सिस्टम में, जिसे VAT भी ठीक नहीं कर सकता था। अगर कोई सिस्टम इसे ठीक कर सकता था तो वो था जीएसटी।
◾ उदाहरण के लिए,
◾ VAT, ‘किसी राज्य के भीतर माल की बिक्री या खरीद पर कर’ होने के नाते भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची की प्रविष्टि 54 के आधार पर एक राज्य का विषय है। इसीलिए राज्य इसपर अपने-अपने मूल्य तय कर सकता है।
बहुत सी चीज़ें राज्य के अंदर ही उत्पादित और खपत हो जाती थी। उस पर राज्य सरकार भी अपना कर लगाती थी। इसमें भी कैस्केडिंग नहीं था।
पर समस्या तब आती थी जब केंद्र सरकार ने किसी एक राज्य में उत्पादित वस्तु पर एक्साइज़ ड्यूटि लगाया और वहीं सामान किसी दूसरे राज्य में गया तो राज्य ने उस पर VAT लगाया। ऐसी स्थिति में कैस्केडिंग इफैक्ट होता था। क्योंकि इनपुट टैक्स क्रेडिट को मैनेज करना मुश्किल हो जाता था या हो नहीं पाता था। ऐसा क्यों?
क्योंकि अलग-अलग राज्यों की VAT की दरें अलग-अलग होती थी। इससे फर्क ये पड़ता था कि एक ही वस्तु का दाम अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता था। चूंकि ये राज्यों के हाथ में था इसीलिए केंद्र के लिए यहाँ ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश नहीं थी।
◾ दूसरी बात ये है कि इसमें सभी प्रकार के करों (Taxes) को शामिल नहीं किया गया था इसने बस राज्यों के बिक्री कर को रिप्लेस किया था। यानि कि चुंगी, मनोरंजन कर एवं सेवा कर (Service Tax) जैसे टैक्स अलग से ही चल रहा था।
इसीलिए साल 2016 में 101वां संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से GST को लाया गया जो कि VAT का ही एक परिष्कृत रूप था। और इसके लिए फिर से इस अनुच्छेद में संशोधन किया गया।
अनुच्छेद 269 में संशोधन किया गया और फिर अनुच्छेद 269A को अंतःस्थापित किया गया। [अब सवाल आता है 269A को क्यों संविधान का हिस्सा बनाया गया?]
Article 269A Explanation
अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान आपूर्ति पर माल और सेवा कर (GST) भारत सरकार द्वारा लगाया और एकत्र किया जाएगा। और इस तरह के कर को संघ और राज्यों के बीच वस्तु और सेवा कर परिषद (GST Council) की सिफारिशों पर संसद द्वारा कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके से विभाजित किया जाएगा। [विस्तार से समझें; Article 269A]
जैसा कि हमने ऊपर भी समझा कि अनुच्छेद 269 के तहत केंद्र सरकार टैक्स वसूलती है और जिस राज्य को ये मिलना चाहिए उस राज्य को दे देते हैं। इसे कहते है केन्द्रीय बिक्री कर (सेंट्रल सेल्स टैक्स)। और यह अन्तर्राजीय व्यापार एवं वाणिज्य के दौरान काम करता है।
साल 2017 में GST व्यवस्था लागू हुआ और इसी के मद्देनजर अनुच्छेद 269क बनाया गया। और यह भी अन्तर्राजीय व्यापार एवं वाणिज्य के प्रयोजन से ही लाया गया है। लेकिन क्यों?
Q. जब Article 269 के तहत अन्तर्राजीय व्यापार एवं वाणिज्य की व्यवस्था थी फिर Article 269A की क्या जरूरत थी?
इन दोनों के बीच कुछ अंतर है:
◾ Article 269 के तहत माल के क्रय या विक्रय पर टैक्स की बात की गई है जबकि Article 269A के तहत अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान आपूर्ति (Supply) पर GST लगाने की बात की गई है।
◾ Article 269 वस्तुओं (Goods) के बारे में है जबकि अनुच्छेद 269क वस्तुओं और सेवाओं (G & S) दोनों करों के बारे में है।
◾ Article 269 के तहत केंद्रशासित प्रदेशों से प्राप्त हुए धनराशि को छोड़कर सारे धनराशि उन राज्यों को सौंप दिये जाते है जिन राज्यों से वो कर उद्गृहित (Originated) हुआ है। जबकि Article 269A के तहत भारत सरकार द्वारा उद्गृहित और संगृहीत कर केंद्र और राज्य दोनों के बीच बंटता है। और यह बंटवारा GST काउंसिल की सिफ़ारिश पर होता है।
ये व्यवस्था अब IGST के नाम से जाना जाता है और अन्तर्राजीय व्यापार एवं वाणिज्य के दौरान अब यही लागू होता है। क्योंकि केन्द्रीय बिक्री कर (CST) खत्म हो गया। इसी के जगह पर IGST आया।
अब यहां पर सवाल यह आता है कि जब केन्द्रीय बिक्री कर (CST) को खत्म कर दिया गया है या फिर GST में ही मिला दिया गया है तो फिर Article 269 अस्तित्व में क्यों हैं?
दरअसल कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो कि अभी भी GST के दायरे में नहीं आते हैं, या फिर उस पर GST काम नहीं करता है। जैसे कि बिजली एवं शराब इत्यादि। ऐसे में Article 269 का बने रहना जरूरी है।
यहां पर हमने Article 269A को उतना ही समझा है जितना कि यहां जरूरी था, विस्तार से समझने के लिए आप दिए गए लेख को पढ़ें;
तो यही है Article 269 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध (Center-State Financial Relation) ◾ GST Explanation with Example |
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⚫ अनुच्छेद 269A – भारतीय संविधान |
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। https://www.avalara.com/blog/en/apac/2017/01/about-vat-in-india.html https://dor.gov.in/tax/introduction-value-added-tax |