यह लेख Article 261 (अनुच्छेद 261) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 261 (Article 261) – Original
भाग 11 [संघ और राज्यों के बीच संबंध] |
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261. सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां — (1) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र, संघ के और प्रत्येक राज्य के सार्वजनिक कार्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहियों को पूरा विश्वास और पूरी मान्यता दी जाएगी। (2) खंड (1) में निर्दिष्ट कार्यों, अभिलेखों और कार्यवाहियों को साबित करने की रीति और शर्तें तथा उनके प्रभाव का अवधारण संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा उपबंधित रीति के अनुसार किया जाएगा। (3) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में सिविल न्यायालयों द्वारा दिए गए अंतिम निर्णयों या आदेशों का उस राज्यक्षेत्र के भीतर कहीं भी विधि के अनुसार निष्पादन किया जा सकेगा। |
Part XI [RELATIONS BETWEEN THE UNION AND THE STATES] |
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261. Public acts, records and judicial proceedings— (1) Full faith and credit shall be given throughout the territory of India to public acts, records and judicial proceedings of the Union and of every State. (2) The manner in which and the conditions under which the acts, records and proceedings referred to in clause (1) shall be proved and the effect thereof determined shall be as provided by law made by Parliament. (3) Final judgments or orders delivered or passed by civil courts in any part of the territory of India shall be capable of execution anywhere within that territory according to law. |
🔍 Article 261 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 11, अनुच्छेद 245 से लेकर अनुच्छेद 263 तक कुल 2 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | विधायी संबंध (Legislative Relations) | Article 245 – 255 |
II | प्रशासनिक संबंध (Administrative Relations) | Article 256 – 263 |
जैसा कि आप देख सकते हैं यह पूरा भाग केंद्र-राज्य सम्बन्धों (Center-State Relations) के बारे में है। जिसके तहत मुख्य रूप से दो प्रकार के सम्बन्धों की बात की गई है – विधायी और प्रशासनिक।
भारत में केंद्र-राज्य संबंध देश के भीतर केंद्र सरकार और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच शक्तियों, जिम्मेदारियों और संसाधनों के वितरण और बंटवारे को संदर्भित करते हैं।
ये संबंध भारत सरकार के संघीय ढांचे के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसा कि भारत के संविधान में परिभाषित किया गया है। संविधान केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की शक्तियों और कार्यों का वर्णन करता है, और यह राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करते हुए दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है।
अनुच्छेद 256 से लेकर अनुच्छेद 263 तक केंद्र-राज्य प्रशासनिक सम्बन्धों (Centre-State Administrative Relations) का वर्णन है। और यह भाग केंद्र-राज्य संबन्धों से जुड़े बहुत सारे कॉन्सेप्टों को आधार प्रदान करता है; जिसमें से कुछ प्रमुख है;
- राज्यों की ओर संघ की बाध्यता (Union’s obligation towards the states)
- राज्यों पर संघ का नियंत्रण (Union control over states)
- जल संबंधी विवाद (Water disputes)
इस लेख में हम अनुच्छेद 261 को समझने वाले हैं; लेकिन अगर आप इस पूरे टॉपिक को एक समग्रता से (मोटे तौर पर) Visualize करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लेख से शुरुआत कर सकते हैं;
⚫ केंद्र-राज्य प्रशासनिक संबंध Center-State Administrative Relations) |
| अनुच्छेद 261 – सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां (Public acts, records and judicial proceedings)
अनुच्छेद 261 के तहत सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियों का वर्णन है। इस अनुच्छेद के तहत कुल तीन खंड हैं;
अनुच्छेद 261 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र, संघ के और प्रत्येक राज्य के सार्वजनिक कार्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहियों को पूरा विश्वास और पूरी मान्यता दी जाएगी।
क्या होगा अगर आपने किसी राज्य के विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की लेकिन दूसरे राज्य में उसको कोई मान्यता न मिले, क्या होगा अगर उच्चतम न्यायालय ने कोई फैसला सुनाया लेकिन किसी राज्य में उसे मान्यता ही न मिले; इसी प्रकार की स्थितियाँ न बने इसीलिए अनुच्छेद 261 के तहत पूर्ण साख एवं विश्वास का सिद्धांत (Principle of Full faith and credit) अपनाया गया। यह प्रावधान कानूनी स्थिरता बनाए रखने और विभिन्न राज्यों की कानूनी प्रणालियों के बीच टकराव को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 261 यह सुनिश्चित करता है कि एक राज्य के सार्वजनिक कृत्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाही को दूसरे राज्य में मान्यता दी जाएगी और पूर्ण विश्वास और श्रेय दिया जाएगा।
अनुच्छेद 261 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि खंड (1) में निर्दिष्ट कार्यों, अभिलेखों और कार्यवाहियों को साबित करने की रीति और शर्तें तथा उनके प्रभाव का अवधारण संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा उपबंधित रीति के अनुसार किया जाएगा।
जैसा कि हमने समझा अनुच्छेद 261(1), एक राज्य के कृत्यों और अभिलेखों को दूसरे राज्य में मान्यता देने का सामान्य सिद्धांत स्थापित करता है। लेकिन इस खंड के तहत यह संसद को उस तरीके को विनियमित करने की भी अनुमति देता है जिसमें ऐसे कृत्यों, अभिलेखों और कार्यवाही को साबित किया जा सकता है।
यह संसद को सामान्य नियम में अपवाद और सीमाएँ निर्धारित करने का अधिकार देता है, जिससे विशिष्ट स्थितियों को संबोधित करने में लचीलापन मिलता है।
कृत्यों और अभिलेखों के प्रमाण को विनियमित करने की संसद की शक्ति इस तथ्य से ली गई है कि अनुच्छेद 245 के तहत संविधान संसद को पूरे क्षेत्र या उसके किसी हिस्से के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है।
सार्वजनिक कृत्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाही में पूर्ण विश्वास और श्रेय की गारंटी देकर, अनुच्छेद 261 सहकारी संघवाद की अवधारणा में योगदान देता है, जहां राज्यों की कानूनी प्रणालियां ढांचे के भीतर एक साथ काम करती हैं।
अनुच्छेद 261 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में सिविल न्यायालयों द्वारा दिए गए अंतिम निर्णयों या आदेशों का उस राज्यक्षेत्र के भीतर कहीं भी विधि के अनुसार निष्पादन किया जा सकेगा।
इस खंड के तहत सिविल न्यायालयों के अंतिम निर्णय या आदेशों को उसी राज्यक्षेत्र में निष्पादन (Execution) की बात कही गई है। यहां पर आपराधिक न्यायालयों के निर्णयों की बात नहीं की गई है। इसकी एक वजह यह है कि सिविल मामलों के निर्णय कई बार क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है।
तो कुल मिलाकर, अनुच्छेद 261 राज्यों और संघ के बीच कानूनी पारस्परिकता के सिद्धांत को मजबूत करता है, जो सार्वजनिक कृत्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाही की पारस्परिक मान्यता की अनुमति देता है, जबकि संसद को सबूत के लिए विशिष्ट नियम स्थापित करने का अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 261 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है क्योंकि यह यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि भारतीय कानूनी प्रणाली पूरे देश में एक समान और सुसंगत है। यह पूरे भारत में अपने कानूनी निर्णयों और आदेशों को लागू कराने के लिए व्यक्तियों और व्यवसायों के अधिकारों की रक्षा करने में भी मदद करता है।
यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं कि अनुच्छेद 261 को व्यवहार में कैसे लागू किया जाता है:
◾ दिल्ली में सिविल कोर्ट द्वारा पारित धन संबंधी डिक्री को मुंबई में देनदार के खिलाफ लागू किया जा सकता है।
◾ तमिलनाडु में विवाह रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाणपत्र पूरे भारत में मान्य है।
◾ बिहार के एक पुलिस स्टेशन के पुलिस रिकॉर्ड को उत्तर प्रदेश के एक अदालती मामले में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
तो आप देख सकते हैं कि अनुच्छेद 261 भारतीय संविधान का एक अनिवार्य हिस्सा है और यह यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि भारतीय कानूनी प्रणाली निष्पक्ष और कुशल है।
तो यही है अनुच्छेद 261 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |